भावेश अंजन के तीन गो कविता

पानी के पियासि पानीये बुझावेला

पा के पानी के पानी जवान हो गइल।
सुखत जिनगी के पुरा अरमान हो गइल॥

झउसत रहे धरती अबे हरिअराइल
पपनी के पानी जस जाता बढ़िआइल
आजु बदरा बा आपन मेहमान हो गइल॥

टुटल पिरीत जस कोरा में कसिके
जियरा जुड़ावेला जुड़ा में फसि के
पुरा मनवा के साचो सनमान हो गइल॥

रतिया में बरसे आ कनखी चलावे
नजर बचा के रोजो अंजन रचावे
नीके-नीके नवको सब, नेवान हो गइल॥
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पानी-पानी हो गइल बा

जवन पानी से पानी-पानी हो गइल बा

बहुत बरिस पर आइल पानी
बहत बा बहे दीं
हर-हर के आवाज लगावत
गंगा-गंगा कहे दीं

मन मसोस, मोबाइल रोवत
बार-बार ऊ चार्जर बा टोवत
कोठी वाला सेल्फी खिंचत
मड़ई के भी रहे दीं

आसमान के रहे निहारत
सुखत देखि करेजा फाटत
हाथ जोरि के करत निहोरा
बरसीं मति अब रहे दीं

समय के बरखा नीमन लागे
दुख-दलिदर सब अलगे भागे
बिजली रानी,अब पानी पानी
अब हमनियो के लहे दीं
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इयादि आवत बा

कइसे भुलाईं, तहार इयादि आवत बा।

उ पीछे-पीछे धावल
उ पराती भी गावल
केतनो महटियाईं, मनवा के लुभावत बा।

उ दुध-भात कटोरा
उ कन्हइया - कोरा
उ पाकिट में मिठाई, अबही टोवावत बा।

उ पुअरा के बिछौना
उ माँटी के खिलौना
झँकझोरत अबहियो, ऊ सरियावत बा।

उ पानी वाला गगरी
उ अंजन वाला नगरी
आजुवो आँखिन में, अंजन रचावत बा।

कइसे भुलाईं, तहार इयादि आवत बा।
का कही, कइसे कही, इयादि आवत बा॥
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