रखवार भइल लुटेरा - देवेन्द्र कुमार राय

पेट काटि दुगो पाई धइनी
अब हमहीं भइनी लाचार
हर चौकठ लट धुनि के रोईं
लुटलसि हमरे चुनल सरकार।

टुअर बिटिया कइसे बिहबि
सरकारी दरद ई कइसे सहबि
तिलक दहेज के लोभी ना देखे
घर में बिटिया बाडी़ कुंआर।

हम ना जननी जेकरा के चुनबि
कही,पांच बरीस तोहरे के धुनबि
जीनीगी के जतन जवन जोगवल रहे
अब ओकरे छछनत करीं गोहार।

धनि भइल शासन धनि सरकार
जनता के अजबे ई कइले लाचार
रखवारे जब भइल लुटेरा
रउवे कहीं जाईं कवन दुआर।

भले धन मेटा में गाड़बि
आपन फटही घरही सारबि
भूखे मरबि बैंक ना जाइबि
बैंक के नामे बथेला कपार।

शासन के सासत से सेंकाइल बानी
उजर कुर्ता देखि के भकुआइल बानी
राजनीति के अंगोरा में जरत
फुंकाइल राय जीनीगी के आधार।
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लेखक परिचयः
नाम: देवेन्द्र कुमार राय
जमुआँव, पीरो, भोजपुर, बिहार

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