का कहीं अपनी बेचैनी के - सुभाष पाण्डेय

का कहीं अपनी बेचैनी के कहानी ए मिता!
जाल मकड़ी के बना अझुरा के छपटाइले हम।

एक ठाँवें एक छन ले ना बिलमनीं आजु ले,
बनि के मर्कट बिबिध डाढ़ी कूदि के धाइले हम।

गाँव का कुइयाँ का पानी से ना कइनीं आचमन,
दूर नदिया नित नहाए बेवजह जाइले हम।

सुनि के चरचा होत तनिको निज के आईं रोष में,
नून, मरिचा फेटि अनके बाति बतिआइले हम।

दिन उछन्नर, राति जागत धन व जस का फेर में,
चेट के मोती लुटा के धूरि गठिआइले हम।

रोशनी, बरखा, पवन, बरगद के शीतल छाँव में,
जाइ ना बिसराम कइनीं, झूठ छिछिआइले हम।

जिन्दगी के जिन्दगी दिहनीं ना कबहूँ हाथ में,
अब कहाँ, कइसे ले जाईं, सोचि पछिताइले हम।

रंग में अतना रंगइनीं खुद के पहिचानल कठिन,
के हईं हम का हईं सोचत में चकराइले हम।
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लेखक परिचय:-
नाम: सुभाष पाण्डेय
ग्राम-पोस्ट - मुसहरी
जिला - गोपालगंज बिहार

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