झिसीया परेला रोज - गणेश नाथ तिवारी 'विनायक'

हरियाली के महीना, झिसीया परेला रोज
मनवा नइखे लागत, संघतिया बिना मौज।

रही पहिले गउआ, त
ऽ होखे रोज मीटिंग
बाबा तर विहाने, त
ऽ होखे रोज सिटिंग।

कहे लोगवा रोजो, ना काम बा ना धाम
खाली बइठ के खाता, करत बा आराम।

‌दिन भर पीपर बइठी, राति के होखे पढ़ाई
लोगवा बुझे सगरो, खाली घूम के करे लड़ाई।

हरियाली के महीना, झिसीया परेला रोज
मनवा नइखे लागत, संघतिया बिना मौज।

छुटल जबसे गउआ, कमाए लगली नोट
पहिला सेलरी मिलल, चढवानी बाबा के रोट।

छुट्टी अइनी गावे, लगनी सब बतलावे
मिलेला रियाल उहवा, त
ऽ बड़ा मजा आवे।

बाकिर इहवाँ नाही, संगति अउरी साथी
कइसे बैठी इहवाँ, दिन कटे ना राति।

नइखन कवनो साथी गावे, ना कवनो संघाती
छोड़ देहले सब गउआ, रुपिया कमाए खाती।

पहिले जयकारा खूब गूंजे, हर-हर महादेव हर गावे
सावन में सब मिलके, संघतिया जल चढ़ावे।

परल ऊसर चबूतरा, बालनाथ बाबा के गावे
लइका गइले कमाये, बुढऊ लो खाली आवे।

हरियाली के महीना, झिसीया परेला रोज
मनवा नइखे लागत, संघतिया बिना मौज।
---------------------------------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.