आग तऽ देवाल ओही पार रही - विद्या शंकर विद्यार्थी

चतुर के तीन गो लइका बाड़सन। बड़का के नाम बुद्धिमान हऽ तऽ छोटका चालाक आ मंझिला के होशियार। बुद्धिमनवा के सादी-बिआह हो गइल बा। तीन गो लइका के बापो बन गइल बा ऊ। मेहरारू के अवते परिवार से पटरी बदले लागल आ राह अलग धरऽ दिहलस।

जबले एक में रहे आ कहीं से दू पइसा कमा के आवे तऽ मेहरारू ओकर आग बो देबे। जइसे अलग बिलग होखे के तइयारी लेके आइल होखे। 
 
"ए जी, जदि रउरा हमरा के आपन बेकत मानत बानीं त हमार कहल करीं ना तऽ अपना माइए बाप के लेके रहीं, एक में। हम नइहर चल जाइब। हमरा खाये के बेरी कबो रोटी आंटत बा तऽ तिअन ना आ तिअन आंटत बा तऽ रोटी ना। हम खइला खइला बिना देह ना नू थउसाइब आपन! अब हम कहऽ दिहलीं तऽ केहू से पूछताछ जन करब, रावा। "

बुद्धिमान के सब बुद्धि मरा गइल। मेहरारू जइसे अपना तिरिया चरित्र के मंतर कान में दे दिहलस। बुद्धिमनवा मेहरारू के कहला में आके अलग हो गइल। सब तऽ सब, जवन मेहरारू दिन चढ़ला से सुतल रहत रहे तवन अब तऽ सेकराहे जाग जात बिया। बढ़नी सुप लेके। अलग भइला में चूल्हा जोरे के चाह लेके। अपना के घर सम्हारे ओली मेहरारू गिनावत बिया। जागी काहे ना मरद के हर नाधे के जे भेजे के बा, ओकरा। आ तूरे के मनसा बा ससुर अउरी सास के, कुफुत देबे के बा ससुर आ सास के कवनो बात में मरद के उसुका के, घर लहर जाव तऽ लहर जाव। आग तऽ देवाल के ओही पार रही।
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लेखक परिचयः
नाम: विद्या शंकर विद्यार्थी
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास (सासाराम )
बिहार - 221115
मो. न.: 7488674912

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