गजर-बजर - मदनमोहन पाण्डेय

आँखिन में बाढ़ि मन में अन बुझल पियासि बा,
धरती बिछावन बा, ओढ़ना आकाश बा॥

डेग-डेग गड़हा बा,बिछली आ काई,
एक ओर बा पहाड़ दुसराओर खाई।
बरखा बा ,बिजुरी बा,हँकड़त बतास बा॥
धरती बिछावन बा.......

लउके ना देहरी पर कहियो सँझवाती,
अँउघाइल देर तक रहेले परभाती।
चान बा उदास मन्द सुरुज के प्रकाश बा॥
धरती बिछावन बा.......

लउकें मारीच रोज,सोना के खाल बा,
दुबकल जटायु कहाँ,जानकी बेहाल बा।
रेखा लखन जी के खींचल बकवास बा॥
धरती बिछावन बा.......

अबहिन ले सिखनी ना जग के ककहरा,
स्याही बा बन्धक,कलम पर बा पहरा।
हँकड़त विनाश बाटे,लँगड़त बिकास बा॥
धरती बिछावन बा.......
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लेखक परिचयः
नाम: मदनमोहन पाण्डेय
संप्रति: प्रधानाचार्य ,ने.इ.का.मंसाछापर,कुशीनगर,उ.प्
पता: ग्राम-मंसाछापर, पो.खेसिया,जिला-कुशीनगर,उत्तर प्रदेश
प्रकाशित साहित्य: सात साझा काव्य संग्रह (खड़ी बोली)

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