माँड़ पसे।
कतिने दिना प
सोन्हगंधी हवा पसरल।
रूखी फुदक के चघल खट से
फेंड़ प अरमूद के।
पक रहल फर का?
चिटखल भूख चिनगी
दूर तक
कहईं कुलाँचत भीतरे।
फाँड़ खसे।
बेरि-बेरि सम्हारते अति ब्यस्त धनियाँ।
पगचाप आतुर।
बज रहल छागल निगोरी-
नाज से कुछ।
लग रहल हरका।
चिटखल भूख चिनगी
दूर तक
कहईं कुलाँचत भीतरे ।
--------------------------------
कतिने दिना प
सोन्हगंधी हवा पसरल।
रूखी फुदक के चघल खट से
फेंड़ प अरमूद के।
पक रहल फर का?
चिटखल भूख चिनगी
दूर तक
कहईं कुलाँचत भीतरे।
फाँड़ खसे।
बेरि-बेरि सम्हारते अति ब्यस्त धनियाँ।
पगचाप आतुर।
बज रहल छागल निगोरी-
नाज से कुछ।
लग रहल हरका।
चिटखल भूख चिनगी
दूर तक
कहईं कुलाँचत भीतरे ।
--------------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें