चिनगी - दिनेश पाण्डेय

माँड़ पसे।
कतिने दिना प
सोन्हगंधी हवा पसरल।
रूखी फुदक के चघल खट से
फेंड़ प अरमूद के।
पक रहल फर का?
चिटखल भूख चिनगी
दूर तक
कहईं कुलाँचत भीतरे।

फाँड़ खसे।
बेरि-बेरि सम्हारते अति ब्यस्त धनियाँ।
पगचाप आतुर।
बज रहल छागल निगोरी-
नाज से कुछ।
लग रहल हरका।
चिटखल भूख चिनगी
दूर तक
कहईं कुलाँचत भीतरे ।
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लेखक परिचयः
नाम: दिनेश पाण्डेय,
आवास संख्या - 100 /400,
रोड नं 2, राजवंशीनगर, पटना - 800023.
मो. न.: 7903923686

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