बुढ़ारी - कवीन्द्र नाथ पाण्डेय

देहींया बनि गइल टुटही मचान भाई जी।
सभे लादत बावे अबहु सामान भाई जी॥

पाया भइल कमजोर दुरलभ भइल अंजोर।
निहुर चललऽ हमार भइल पहचान भाई जी॥

केहु लगे नइखे आवत सभे काम बा अढ़ावत।
सभ केहु देत बा आपन हमरा ग्यान भाई जी॥

पइसा कउड़ी छिनाइल जाड़ा में ओढ़नो ना आइल।
अब तऽ बनलऽ बानी उधारी के दोकान भाई जी॥

कवींदर देखतारें दाशा करस केकरा पर आशा।
अब तऽ लउकत नइखन कतहुँ भगवान भाई जी॥

देहींया बनि गइल टुटही मचान भाई जी॥
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कवीन्द्र नाथ पाण्डेय

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