रफथरो - विवेक सिंह

आलोक कबो आपन हाथ पर बन्धल घड़ी में टाइम देखस। त कबो इंटरव्यू ऑफिस के वेटिंग रूम में टाँगल देवालघड़ी पर।उनका आस-पास उनके उमिर के बिसगो लइका हाथ मे आपन डोकोमेंट लेके बइठल बारे इंटरव्यू ख़ातिर। आलोक के अब इयादों नइखे रह गइल कि ऊ केतना बार इंटरव्यू देले अउर कवना-कवना काम ख़ातिर। अइसे त ऊ इंजीनियरिंग कइले बारे मेकेनिकल डिपार्टमेंट से बाकिर अब ओकर कवनो मायने नइखे रह गइल। कवनो कम्पनी में एको पोस्ट खाली रहला पर इंटरव्यू देवे वाला के लाइन साबित कर देता कि ई बेरोजगारी का कहाला? इंटरव्यू ख़ातिर अइला तरकीबन दु घन्टा हो गइल बाकिर अबहीं तक उनकर नाम ना पुकारल गइल। टेबुल पर रखल बोतल के पानी पी के आलोक सोफा पर आपन माथा के थोरके अलम देलें।
उनका कान में एगो आवाज गूँजे लागल अउर आँख मुँदा गइल।
"हम जानत बानी हमर लइका बहुत बड़ अदिमी बनी, देख लेम आप।"
ई बात आलोक के माई आलोक के बाबू जी के चाय के कप देत कहले रहली।
"ई अपना खनदान के नाम रोशन करी। आज गोतिया-दियाद, समाज के लोग हँसत बा नू कि पांडेय आपन अवकात नइखन देखत आ चलल बाड़े लइका के इंजीनियरिंग पढ़ावे। सुन ली रउआ, भलहीं हमर रोआँ रोआँ बेचा जाई बाकिर हम अपना बबुआ के पढ़ाइम। उनका के इंजीनियर बनाएम।
देवस्वरूप पांडेय जी पेपर के पन्ना पलट के कहले।
"अरे, हम कहाँ मना कइले बानी। तू अपना लइका के इंजीनियर बनावs भा डाकडर।
जवन रहे तवन इनके पढ़ाई में लाग गइल, अब जवन बाप दादा के जोगावल जमीन बा ऊ हम मरतो दम तक ना बेचम। हमरा देखे से ई काम लायक पढ़ लेले बाड़े, अब इनका कमाये के चाहीं, कहईं कवनो फैक्ट्री वगैरा में जाके।"
जानकी तनी रीझिया के बोलली- "अरे रउवा भरोसे के बइठल बा? अबहीं ई ना भुलाईं कि हम जिन्दा बानीं। चार दिन बाद बबुआ के कॉलेज में दाखिला करावे के बा। उनकर काउंसलिग भइल बा। कॉलेज बिलासपुर में बा। कमसे कम तत्काल में दु लाख रुपिया चाहीं।"
पांडेय जी अब पेपर मोड़ के रख दिहनीं आ चाय के कप टेबुल से उठावत कहनीं- "तहरा लोग के फेर में अब हमार इज्जत कहईं के ना रही। अरे, जेतना बड़ चादर रहे ओतने गोड़ फइलावे के चाहीं ना त आदमी उघार हो जाई भा चादर फाट जाइ।"
पांडेय जी के रोस देख के जानकी तनी नरम मिजाज बना के बोलली- "एजी, रउवा जानत बानीं कि हमनी के इहे एगो जीवन- जोति बाड़े त काहे ना हमनी इनकर जिनगी सँवार दिआव? एगो होला कि लइका पढ़े में कमजोर रहे त आदमी आग पाछ सोचेला बाकिर आपन आलोक त साँचो में दीपक बा आ ई सब कुछो त ओकरे ह। ऊ कमाई त फिर से जमीन खरीद सकत बा। घर बना सकत बा लेकिन सही राह मिली तब। हमनी सब त अनपढ़ बानींजा।आप जिनगी भर किसानी कइनीं। खाली खइनी अउर खिअइनीं।तनी सोचीं, आलोक के बिआह भइल आ दुनु बेकत के मन के मेल ना खइलस त का होइ? नवका जमाना के लइकी ऊ नइखी सन्, जवन अभाव में अपना के सहेज ल सन् अउर मर्द के कड़वा बोल ना बोल सन्।"
देवस्वरूप पांडेय जी चाय खत्म करके बोलले- "बस बस, हम समझ गइनीं। तू हमके जादे ज्ञान जनि द, हम बात क के आवत बानीं केहू से। अब तू लोग के आगे हमर का चली।"
एतना कह के पांडेय जी बाहर निकल गइनी पइसा के जोगाड़ में। जब दुपहरिया भइल त जानकी बाजार चल गइली।
आलोक के माई बाप पढ़ल- लिखल ना रहे लोग बाकिर पढ़ाई के महत्त्व जानत रहलन। अपने- आप के तकलीफ में राख के ऊ आलोक के अच्छा शिक्षा देहल चाहत रहलन। आलोको पढ़े में तेज रहले। उनका अपना टाइलेंट पर ही बिलासपुर के कॉलेज में जगह मिलत रहे। अब खाली कॉलेज के फी अउर हॉस्टल के चार्ज भरल बाकी रहे।
आलोको आपन मन के समझा चुकल रहले कि अब हम नइखी पढ़ सकत काहे कि दाखिला ख़ातिर मात्र चार दिन बचल रहे अउर अबहीं तक कवनो रस्ता ना लउकत रहे। इहे तनाव में ऊ दिन भर घर से बहरी रहस, अपना दोस्तन के साथ बाग बागइचा में घुमस।
जब मुँहअन्हार भइल त आलोक घरे अइले आ हाथ-गोड़ धो के अपना कमरा में चल गइले। दु - तीन घन्टा बाद सब केहू एक साथे खाए बइठल तब उनकर बाबू जी पुछले- "आलोक, का सोचले बाड़? अब का करे के बिचार बा? "
आलोक उदास आवाज में कहलें- "अब का, अब हमू कवनो गाँव के लइकन के साथे शहर चल जाएम आ कवनो फैक्ट्री में काम करम।"
जानकी खाना परोसत कहली- "काहे फैक्ट्री में काम करबs? तहार इंजीनियरिंग के का होइ बबुआ?"
आलोक रोटी के एगो निवाला अपना मुह में डालत कहले- "जब पइसे नइखे त कइसे पढ़ाई होइ माई? हम इंजीनियरिंग ना पढम त मर नानू जाइब? "
अपना मुह में कवर डालत पांडेय जी कहनी- "काहे निराश होत बारs बबुआ? अभी तोहर बाबू-माई जिन्दा बा, खा के आपन समान सझिया लs अउर काल्हु निकल जा बिलासपुर, पइसा कउडी के फिकिर तोहरा नइखे करे के। ई चिंता फिकिर हमरा करे के बा।"
ई बात सुन के आलोक के चेहरा पर खुशी के झलक उभरे लागल अउर हाली-हाली खा के अपना कमरा में चल गइले।
जानकी, हाथ-बैना से हवा हाँकत, पांडेय जी से पूछली- "केतना के बेवस्था भइल ह? "
पांडेय जी थारी में हाथ अँचवत कहले- "हरिहर चौबे देले ह अउर केहू तैयार ना भइल ह।उहो दु दिन के अंदर रजिस्टरी करे के पड़ी, केतनो कहनीं बाकिर डेढ़ लाख ही मिलल ह, ओसे ऊपर उहो ना चढ़ले ह। उनका खेत के डरारे आपन खेत रहल त उहो मिल गइल ना त दोसर केहू बहुत कम देत रहे।"
जानकी थोड़ा गमगीन आवाज में- "हम जानत रहीं ई बात, लोगन के खाली मोका चाहीं कि केहू कसिक भा मुसीबत में पड़ो आ हम आपन रोटी सेकी।अच्छा सब दिन एक समान ना होला। आपन बबुआ खाली पढ़ लेस अच्छा से। हमू पच्चास हजार ले इंतेजाम कर देले बानी।"
ई बात सुन के देवस्वरूप चिहाअ के पुछलन- "तू कहा गइल रहलु ह, के देहलस ह तोहरा के पइसा? "
पांडेय जी के रुपिया देत जानकी कहली-" रउवा गइला के बाद हम बजार गइल रहनीं। भोला सोनार किहाँ आपन दुनु कंगन अउर अँगूठी गिरवी रख देनी। भोला से बोल देले बानी कि हमर बबुआ बहुत जल्दी ई छोड़ा के ले जाई।"
ई बात आलोक सुन लेलन। उनकर आँख अपने आप माई बाप के ई तेयाग अउर स्नेह के बहाव में बहे लागल।
बेटा के प्यार में पागल हर माई- बाप होला। सब माई चाहेली कि उनकर लइका काबिल बने, नाम कमाव, रुतवा मिले।
आलोक रोअत अपना माई के करेज से लाग गइले अउर कहले-
"माई, तू ई का कइलू? हमरा ला आपन सिंगार बेच देहलू? अरे हम ना पढम त कवनो आसमान ना टूट जाइ। ई तू का कइलू माई? हम ना जाइब माई, बिलासपुर। तू काल सुबेरे आपन गहना लिआव जाके।"
ऊ बाबू जी के गोड़ पकड़ि के कहले- "बाबूजी, ई पइसा तू चौबे चाचा के काल्हु लौटा द, हमरा इंजीनियरिंग नइखे करे के। उहो अपना बाबा दादा के थाती अउर आपन माटी बेच के। हमरा ला हेतना तयाग करत बानी आप सब इहे बहुत बा। हम भगवान से इहे माँगम कि हर जन्म में अइसने हमार माई बाबू बनावस। जब कबो जन्म मिले हम तहरे सब के गोदी पाई।"
आलोक के साथे साथे उनकर माई बाबू दुनु जना रोये लागल लो।
आलोक के बाबू आलोक के उठा के लोर पोछत कहले- "अरे बेटा, ई सब त फिरु मिल जाई, जब तू पढ़ लिख के कामयाब होखब। हमनी के जिन्दगी सुख से कटी जब तू कमाये लगबs। त सब सही हो जाई।"
फिरो जानकी अपना आँचर से आलोक के चेहरा पोछत बोलली-
"ना बाबा, तू जन रोअs। तहार पुरा भभीस पड़ल बा, हमनी आपन गुजारा कर लेम जा। तू आपन सपना पूरा करऽ। तहरा सपना में हमनी के सपना बा।
हमार सवख तू बारअ, तहर हर सवख हमर बा, हमार सिंगार तोहर बाबू जी बानीं। उहाँ के बनल रही हमर सिंगार बनल रही।
तहरा आगे ऊ सोना के मोल दु पइसा के बा। हमरा खातिर तूही सोना बाड़ऽ, तूही हीरा बारऽ।"
तीनो जन के बात के साथे साथे आँख से बहत धार पुरा घर के स्नेह अउर परेम के भाव में डूबा देले रहे।
एगो तागा में जे तरे छोट-छोट गुरिया के दाना गूथल जाला। ओहि तरे बाप, माई, बेटा एक दूसरा के परेम के बाह में गुथा गइल लोग।
आलोक अब अपना माई बाबूजी के सपना ला जीए लगलन। कॉलेज में अनेक मनलुभावन रस रहे लेकिन अपना के एगो सीमा में राखस।
जब कॉलेज से छुट्टी मिले त गाँवे ना जाके पार्ट टाइम काम कर लेस। माई के जादे जिद कइला के बाद जब गाँवे जास त टोला, मोहल्ला के बड़ लोग उनका के सुना के टोन कसे कि खाये के दाना ना, ओढ़े के बिछवना आ चलल बारे बबुआ इंजीनियरिंग पढ़े।
सब के ताना बाना सुन के आलोक मूड़ी नीचे कर चुप-चाप अपना घरे चल जास, काहे कि उनकर माई के कहल बात उनका दिमाग मे रहे। उनकर माई उनका से कहले रही- "बबुआ गरीबी कवनो पय ना ह। गरीबी में मर गइल आपन कमजोरी ह। ई समय के दौड़ ह जवन आवत-जात रहे ला। हर केहू के बात के जबाब समय पर देवे के चाही।"
जब दुख के बदरी घेरे ला त चारो तरफ से आदमी के तोप के अपना भवंडर में उठावे के चाहे ला ताकि ऊ आदमी के अस्तित्व ही खतम कर देव बाकिर इंसान अपना अडिग परिश्रम अउर कर्म से आपन मार्ग बनावत उ भवंडर से पार होला आ आपन कर्म से मिलल परकास में अपना के परकासपुंज बना के दुनिया के देखावेला।
जस जस आलोक के सिमेस्टर खतम होखे, ओहि तरे उनकर घर के स्थिति कमजोर भइल जाव अउर उनकर माई बाबू जी के सेहत चिंता फिकीर से घटल जाव।
आलोक हर परीक्षा में अव्वल आवस आ कॉलेज में उनकर नाम प्रतिभाशाली विद्यार्थी में होखे।
उनका अपना पर बहुत भरोसा रहे कि पढ़ाई के बाद उनका अच्छा नोकरी मिली, घर के साथे साथे अपनो स्थिति सुदृढ़ हो जाई
लेकिन हर सोचल बात होइत त ई दुनिया मे केहू दुखी भा बेरोजगार ना रहित।
आलोक के आज इंजीनियरिंग कइला तीन साल हो गइल अउर उहो उहे कतार में आज बाड़े जहाँ करोड़ो के सख्या में भारत के नवयुवक बेरोजगार बाड़े। कवनो काम करे के तइयार बाड़े।केतनो केहू डिग्री लेले बा लेकिन नोकरी के आभाव में सब डिग्री धुर फाकत बा।
केतना जगह इंटरव्यू में आलोक के उका पैरवी, रिफ्रेंस के बिना नोकरी ना मिलल त केतना जगह घुस के बिना।
ई सब के बावजुद कहईं नोकरी मिलबो करे त सॅलरी के कमी आ काम के लोड ज्यादा रहे।
पिज्जा डिलेभर भा कॉलसेंटर में काम करे वाला के सॅलरी जेतना उनकर सॅलरी मिले कहीं - कहीं ।
आलोक ई सब कबो-कबो बर्दास्त ना कर पावस आ लाखो के भीड़ में ऊ चीख के रो पड्स लेकिन शहर के भीड़ ऊ चीख के उठे ना देव। अपना भागाभागी के जीवनचर्या में दबा लेव।
आलोक के कॉलेज कम्पलीट कइला। अउर लगातार नोकरी खाती इंटरव्यू देत एक साल से ऊपरर हो गइल लेकिन अभी तक ऊ बेरोजगारी के दलदल में ही धसल बाड़े।
अचानक आलोक के केहू झकझोर के उठवलस आ आलोक के आँख खुलल- "आप जा सकते है अब इंटरव्यू नही होगा। H R सर किसी इमरजेंसी मीटिंग के लिये चले गये है।"
ई बात उ ऑफिस के एगो लेडी बोलल।
आलोक अपना अगल-बगल देखले।केहू ना रहे उनका के छोड़ के।फिरो कलाई पर बन्धल घरी देखले, दस बजे के आइल अब तीन बज गइल रहे तब आलोक ऊ लेडी के देखले अउर कहले-
"थैंक्यू मेम आपने हमे बता दिया।वैसे भी हमारी जिंदगी तो 'रफथरो' हो गई है। आज भी खाली गया। कोई बात नही।"
एतने कह के आलोक आपन डोकोमेंट हाथ मे लेके गेट से बाहर निकल गइले। आ ऑफिस के ऊ लेडी उनका के देखते रह गइली।
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लेखक परिचय:-
नाम: विवेक सिंह
पता: पंजवार सिवान
संप्रति: किसान

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