तीन साँझ - दिनेश पाण्डेय

(एकम एका)

धूसर साँझ
बिरिछन का मध पसर गइल।
धरती नियरे धूँआ जइसन ससर गइल।
अब्बो ले ऊपर अकास कुछ ऊजर बा।
मेंट चुकल चुरुँगन के सब धमगूजर बा।
नवकी कनियाँ
बहुते बनेयाँ,
साँझा-बाती बारे ना।
अन्हियारे में पितर-पियारे-अँखियाँ
तरसत तारे रे।

(दोयम दूज)

नदी मधे पसरल बा
बालू के रेती,
रेतिए प सुते साँवरी।
माँगि के सेंदुर झरि
माथे छितरइले,
लट्ट अझुरौले बावरी।
गेंसू के अन्हरिया में
डूबे जोत बिन्दुली के
नथिया चनरमा
धरत छाव री!
दूरि एगो कौनो पाँखी
ठीक तड़बन्ना ऊपर
घूरि-घूरि देवे भाँवरी।

(तीयम तीज)

नदिया में
नाव तरे।
नाव में
दियना बरे।
दियना से
मोती झरे।
--------------------------------
लेखक परिचयः
नाम: दिनेश पाण्डेय,
आवास संख्या - 100 /400,
रोड नं 2, राजवंशीनगर, पटना - 800023.
मो. न.: 7903923686

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.