चिता - दिलीप कुमार पाण्डेय

बोनस ला होत परदरशन धीरे-धीरे उग्र रूप लेवे लागल। देखते देखते मजदूर संघ का नेता का हाथ से ममिला निकल गइल। चाय बागान के मनेजर का पुलिस बोलावे के परल। मनेजर सोंचलें जे पुलिस के देख मजदूर लोग शांत हो जाई आ बात-चीत द्वारा ममिला फरिया जाई। बाकिर भइल उल्टा पुलिस के देखते परदशनकारी लोग आउर उग्र हो गइल आ तीर-धनुष से हमला कई दिहल। पुलिस आपन जान बचावे का चक्कर में मुरचाइल बंदूक से चार चकर गोली चला दिहलस। बंदूक से निकलल गोली का मार्ग में अकलु पड गइलें आ उनकर छाती छेदा गईल। उनका छाती से खून के फुहारा निकलल देख सभ लोग ठमक गइल। उनका के उठा डॉक्टर का लगे ले गइल लो।
पुलिस खातिर नीमन सुजोग बन गइल अउरी उ बहादुरी देखावत पिछकुरिए भागल आ थाना में पहुंच अपना आला-अधिकारी के सूचना देहलस। हद से हद एक घंटा बीतल होई कि सारा बागान सी आर पी एफ से भर गईल।
ओने अस्पताल पहुंचे से पहिलही अकलु के प्राण छूट गइल। उनकर लाश बागान का फैक्ट्री का सामने रख मुआबजा के मांग होखे लागल। मुआबजा का रूप में बीस लाख रोपेया आ लडिकन का पढाई के खरचा मंगात रहे। पुलिस परशासन का मौजुदगी में मुआबजा का रूप में तीन लाख रोपेया मृतक का परिजन के देवे ला कंपनी तईयार भइल। लेकिन पांच आदमी जे बात चीत खातिर आगा बढल रहे उ लोग एह मुआबजा राशि से संतुष्ट ना रहे। बहुत समझवला-बुझवला पर उ लोग शव के अंतिम संस्कार करे ला तईयार भइल। एक बेर खातिर ममिला शांत तऽ हो ग।इल लेकिन अकलु का मउअत के कुछ लोग भूला ना पावत रहे।
कुछ दिन बाद बागान के मनेजर अपना निजी कारण से छुट्टी पर गइल रहस। एह से बागान के मालिक जवन जे घटना का समय विदेश रहस अपना पत्नी का संगे बंग्ला में रहे अईलें। बागान का मालिक का अइला तीन दिन भइल रहे। चउथा दिने सबेरही उ बागान का सरदार के बंग्ला में बोलवईलें। उनका से बात-चीत होखे लागल। मालिक सरदार से अकलु का परिवार के समाचार पूछलें। सरदार कहलें "मालिक हालात ठीक नइखे बुझात। हम रउआ से भेंट करहीं आला रहनी हँ। हो सके तऽ रउआ एहजा से चल जाईं।"
'अइसन काहे कहऽ तारऽ? अकलु का गईला के हमरो दुख बा। हम उनका लडिका के पढाके लम्हर आदमी बनावल चाहऽतानी।। हमरा जीवन खातिर हमरा लगे जथेष्ट सम्पति बा। एगो लडिका बा उहो विदेश में बा", मालिक कहलें । "ऊ त् ठीक बा लेकिन मालिक सावधाने रहेम ।अकलु का मरला के आग अभी ठंढाइल नइखे "-सरदार मंगरू कहलें।
ओने मंगरू का घरे पहुंचते उनका के कुछ लोग बंदी बना लेलख। उनका के लागल लो धमकावे "तूं मालिक के चम्मचा बनल बाड़। तहार सब चन्मचई छोडा देब सऽ। अकलु का मउअत के बदला लेवे के समय आ गइल बा। आज के रात उनकर आखिरी रात होई।" मंगरू ओह लो के बहुत समझइले, रोअले ,गिरगिरइलें। लेकिन ऊ लोग मंगरू के हांथ गोर बान्ह के एगो कोठरी में बंद कइके दूगो रखवार बइठा दिहलस।
मालिक दिन में फैक्ट्री आ बागान घुमले जे भी मजदूर मिलल ओकरा से बात कइलें। सांझ का बेरा लॉन में पति-पत्नी बइठ के चाय पीअत रहे लो। ओही घडी बदला लिअइबे करी बदला लिअइबे करी के आवाज ओह लो का कान में परलऽ। ई लोग कुछ समझ पाइत तले बंग्ला के चारो ओर से सैकडो लोग हांथ में लुकाडी लेले घेर लिहलस। ‘अकलु के कातिल ईहे हऽ‘ ‘हमनी के खून चुस्से अइले हँ’ ‘एकरा के छोडे के नइखे’। इ सभ बात लोग जोर-जोर से बोले लागल। दूनु बेकत जान बचावेला बंग्ला में भाग के लूकाइल लोग लेकिन होनी का कुछ अउर मंजूर रहे। सब मजदूर बंग्ला के चारो ओर से घेर किरासन तेल छिडिके लगले आ देखते-देखते बंग्ला आग का हवाले क दिहलें। बंग्ला का भीतरो लुकाडी गीरे लागल। दूगो जान बंग्ला का भीतर एने से ओने, ओने से एने दउडत जान बचावे के गोहार लगावत रह गइल। अंत में पति-पत्नी के आग अपना चपेट में ले लेहलस आ उ लोग तडप-तडप के मर गइल। ओह दूनु बेकत के जीअते चीता जर गइल। आग लगावे आला सारा दृश्य देख मुस्कुरात रहे। ओह लो का चेहरा पर बदला पूरा भइला के खुशी के भाव रहे ।
बाबू माई का मरला के खबर सुन बाबूल बिदेश से अइलें। एह घटना का सदमा से उनका मुंह से आवाज निकलबे ना करे। बुझाय जे उनका के ठकुआ (कठुआ) मार देहले रहे। मने मन उ ईहे सोचस जे आदमी के मोल जानवरो का बरोबर नइखे का? का इंसान के संवेदना मर गइल बा? केहू के केहू कइसे जींदा जरा सकऽता? का ईहे रिषी-मुनी के देश भारत हऽ? बाबूल माई-बाबू कऽ राख के छाती से लगा पूका (फूका) फार के रोए लगलें।
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लेखक परिचय:-
नाम - दिलीप कुमार पाण्डेय
बेवसाय: विज्ञान शिक्षक
पता: सैखोवाघाट, तिनसुकिया, असम
मूल निवासी -अगौथर, मढौडा ,सारण।
मो नं: 9707096238




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