सभही फगुआइल बा - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

जब अनही सभ सुघ्घर लागे
मन महुवाइल सुत्तत जागे
मुसुकी के का हाल सुनाई
सभही फगुआइल बा॥

चलत बहुरिया पायल बाजे
बब्बो के अब मन ना लागे
भौजी के अब चाल देखाई
सभही फगुआइल बा॥

लइकन के अब बात न पुछी
लीहल दीहल सौगात न पुछी
बाबूजी के जब जेब कटाई
सभही फगुआइल बा॥

बबुआ बाबुनी दूनों सेयान
नीमन रखलें दिलो जान
फेसबुक पर का चिपकाई
सभही फगुआइल बा॥
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लेखक परिचय:-
नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
संपादक: (भोजपुरी साहित्य सरिता)
इंजीनियरिंग स्नातक;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
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