आरोही हजारा के मोती - चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही'

पनघट घुंघट सादगी, बर पीपर के छांव
कवन चुरा के ले गइल, काटे धावे गाँव।

काहे खातिर होत बा, लूट पाट उत्पात
जानत दुनिया गजनवी, रोवत सुसुकत जात।

गोरी सुतल सेज पर, कर सोरह सिंगार
सास ससुर कुत्ता बनल, नोकर बनल भतार।

देवर भाभी बीच में, छत्तीस के संबंध
सास पतोहिया बीच में रोज नया अनुबंध।

सुर ताल लय छन्द बिन, अब कविता बेकार
बिन साड़ी सिंगार के, लंगटे नाचत नार।

दिन दहाड़े रोड पर, आरोही कर लूट
लोकतंत्र में लोग के, सात खून के छूट।

अपढ़ अनाड़ी लोग के, गाँव नगर भरमार
कहे लोग जनतंत्र के, जाहिल के सरकार।

सोचल बोलल कइल जब, तीनो होखे एक
मानव बने महान तब, बने समाजो नेक।

भय केहू के देत ना, ना भय मानत आन
आरोही सब भ्रान्ति से, ग्यानी जन के जान।

आपनआपन पड़ल बा, का केहू से काम
अनकर बस्तीजारि के, के पाई आराम।

वादा के दे झुनझुना, पति आफिस में जात
आरोही सध्या समय, घुसतो घरे डेरात।

बोझिल कविता हो गइल, रसहीना बेकार
बिन पतई के गाछ पर, लागे फूल अंगार।

अर्थी पतई के उठा, सरपर चलल बयार
ढरढर डेला रो रहल, होके जार ब जार।

आरोही बरसात भा, गर्मी के दिन रात।
आवाँ भइल कुम्हार के, कटले कहाँ कटात।
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'आरोही हजारा' के मोती - चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही'चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही'

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