सांस खातिर सरगम बेगाना भइल
जिंदगी बस जिये के बहाना भइल।
जिंदगी बस जिये के बहाना भइल।
गिर के उनका नज़र से उठल बानी हम
बानी सबका नज़र के निसाना भइल।
लोर पिए के जनमे से लागल लकम
अब ना छुटी निसा ई पुराना भइल।
उनका रोवला बुला एगो मुद्दत भइल
हमरा हँसला, ए यारे, ज़माना भइल।
रउवा दिहीं दरद ना, गज़ल देब हम
इ गज़ल रउवा नाँवे बयाना भइल।
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बानी सबका नज़र के निसाना भइल।
लोर पिए के जनमे से लागल लकम
अब ना छुटी निसा ई पुराना भइल।
उनका रोवला बुला एगो मुद्दत भइल
हमरा हँसला, ए यारे, ज़माना भइल।
रउवा दिहीं दरद ना, गज़ल देब हम
इ गज़ल रउवा नाँवे बयाना भइल।
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नाम: जगन्नाथ
जनम: 15 जनवरी 1934
जनम अस्थान: कुकड़ा, बक्सर, बिहार
परमुख रचना: पाँख सतरंगी, लर मोतिन के
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