धरती के हँसत सिंगार - शिवपूजन लाल विद्यार्थी

रोपनी लागल धुआँधार हो, जिया हुलसे हमार।
धरती के हँसत सिंगार हो, जिया हुलसे हमार।।

रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरिया
मेघा मारे रंग-पिचकरिया,
रसवा में भींजे साँवर बधरिया
खेतवा में लोटे बहार हो.... जिया हुलसे हमार।

मौसम ई कतना पियारा सुहावन,
अमरित लुटावत बा धरती पर सावन
रोपनिन के गीतन पर नाचेला तन-मन
चहकत बा सँउसे बधार हो..... जिया हुलसे हमार।

बन्हले कमरिया से कोस के अँचरिया
खोंटले ठेहुनवाँ तक लसरल चुनरिया
निहुरि-निहुरि धान रोपे गुजरिया
चुड़िया के बाजे सितार हो.... जिया हुलसे हमार।

छपर-छपर पनियाँ में भीजल सजनवाँ
गमछा पहिरले कबारत बीहनवाँ
मनवाँ में तयरेला लह-लह सपनवाँ
कब होई जाने सकार हो.... जिया हुसले हमार।

होत भिनसहरा ही जागेली गोरिया
सखियन के संग जाली खेतवा का ओरिया
आपुस में होला चुहलेवा-ठिठोरिया
खेतवा में कदई से प्यार हो.... जिया हुलसे हमार।
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शिवपूजन लाल विद्यार्थी



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