सपना के संपत - प. व्रतराज दुबे 'विकल'

येक रात के बात हऽ रहीं कहीं हम जात।
येगो बुढ़िया से भइल रस्ता में मुलकात।।१।।

सुबहित कपड़ा के बिना लागत रहे भिखार।
बिलख-बिलख रोअत रहे रह-रह पुक्काफार।।२।।

कहनी हम तूँ हऊ के, कहँवा बा घर बार।
काहें रोवेलू इहाँ रह-रह सिसकी मार।।३।।

बोलल बुढ़िया बिलख के कथी सुनाई हाल।
जेके हम आपन कहीं उहे बनल बा काल।।४।।

सब कुछ घर में भरल बा, ना बा कहीं अभाव।
लइकन के मारे सदा, मन में टभके घाव।।५।।

बेटी बड़का के हईं बड़का बात विचार।
अपने घर के लोग सब कइले बा लाचार।।६।।

हमहीं भोजपुरी हईं भसवन के रसधार।
सबके करीं सिंगार हम अपने रहीं उधार।।७।।

अजब कहानी हमर बा कइसे करीं बखान।
रोवे के कारन हमर, बा हमरे संतान।।८।।

सिव के हम बेटी हईं माँ गौरी के प्यार।
सगरे परकिरती हमर करे सदा सतकार।।९।।

देवन के फेरा लगल भइल हमर संस्कार।
सरल सुहावन देंह पर बनल बनावट भार।।१०।।

देव सभे अपनाइके दहलें रूप विगार।
संसकिरित लगले कहे हमरा के चुचकार।।११।।

उपसरगे बीसरग सब, गहना बनल हमार।
विभगति प्रत्यय से हमर, होखे लगल सिंगार।।१२।।

दुलहिन हमरा के बना, छिना गइल अधिकार।
हमरा मौका ना मिलल, देखीं हम संसार।।१३।।

रस के गागर छीन के, पीये लागल लोग।
हमरा के बूझे लगल, विसय बासना भोग।।१४।।

झेलत सब झेला इहे हो गइनी हम बूढ़।
केहू ना खोजल कबो हमके मन से ढूंढ़।।१५।।

अब जे खोजे भिड़ल बा ले के मन में चाव।
लागे साधत बा उहो हमसे आपन दाव।।१६।।

केहू पइसा ला हमें चाहे कइल उधार।
केहू अपना नाव ला खोज रहल आधार।।१७।।

लागेला केहू लगे नइखे सही सहूर।
अपना-अपना लाभ ला सभे करे मजबूर।।१८।।

संस्कार आपन हमर, कुहुकेला दिन रात।
नाहीं केहू सुनेला, सही सनातन बात।।१९।।

हमरा गुन मरजाद के सभ्भे कऽकऽ मोल।
बेंचऽता बाजार में, पोथी-पतरा खोल।।२०।।

येही से घर छोड़ के, रो-रो करीं पुकार।
केहू दिलवा दे हमर, जीये के अधिकार।।२१।।

पिंड चकोड़न से छुटे, मिले हमर पहचान।
फुहर-गँवारन से बँचे तनिका हमरो जान।।२२।।

आजादी सबके मिलल, सबके भइल विकास।
कइसन करम हमार बा, दर-दर फिरीं उदास।।२३।।

हमरा के सीधा समझ सभे चलेला चाल।
नेता ना केहू भइल सुने हमर जे हाल।।२४।।

सहत-सहत कबले सहीं हमहू अत्याचार।
संविधान उफ्फर परे जे देता दुतकार।।२५।।

तब कहनी हम सोच के माई सुनऽ हमार।
करुनाकर भगवान से बतिया कहब तहार।।२६।।

करुनाकर के दया से सुधरी तोहर भाग।
करुनाकर के कथा से किस्मत जाई जाग।।२७।।

अब रोव के ना परी राखऽ ई बिसवास।
तहरा खातिर करब हम, सजी बरत उपवास।।२८।।

जान भले जाई हमर, तहर बँचायब मान।
हमरो ईहे परन बा, मदद करें भगवान।।२९।।

होखे ना देहब कबो तहके हमू उदास।
मरजादा तोहर बढ़ी, होखी ना उपहास।।३०।।

तबले हमरा हाथ में आइल इक अखबार।
जवना में छापल रहे सुग्घर सामाचार।।३१।।

संविधान के सूचि में सामिल होके आज।
भोजपुरी के माथ पर चढ़ल खुसी के ताज।।३२।।

बरतराज के हिया के बिहँसल तब अनुराग।
भोजपुरी सामाज के खुल गइल अब भाग।।३३।।

आईं मिलके करीं जा, माई के गुनगान।
सुन लहले सब बात के, करुनाकर भगवान।।३४।।
---------------------------------
प. व्रतराज दुबे 'विकल'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.