माई के ममता - प्रभाकर पांडेय

तिजहरियवाँ छाँटी काटत रहनी तवले कहीं माई घर में से हाँक लगावत निकललि, "ए मझिलू! ए मझिलू! काहाँ बाड़S हो? अरे तनि लवना-ओवना के इंतिजाम क देतS। दिन डूबे जाता।" हम माई के बोलावल सुनि के छँटिकट्टा में से बाहर निकलनी अउरी कहनी, "माई ते काँहे चिंता कइले बाड़े। हम दुपहरिएवे में लग्गी ले के बड़की बारी में गइल रहनी हँ अउर तीन बोझा लवना तुड़ि के ले अइनी हँ। अउरी हाँ! उ लवना हम भुसउला घर में ध देले बानी।" हमार इ बाति सुनि के माई कहलसि, "अच्छा! ठीक कइलS हS। हाँ, तनि बिहने एगो अउरी काम कS दिहS, केहू के बोलवाके खोंप छवा दिहS।" हम कहनी, "ठीक बा, बिहने खोपवों छवा देइबि अउर तें कई दिन से देहरी में से गोहूँ निकालि के घाम देखावे के कहतारे, उ हो क देइबि।" हमरी एतना कहते, माई कहलसि, "अरे! हँ, गोहूँ के घाम देखावल त बहुते जरूरी बा काँहे की उ घुनाइल सुरु हो गइल बा।"

हमार अउरी माई के इ बाति चलते रहे तवलेकहिं उहवाँ घनेसर भाई साइकिल पर कइगो झोरा लटकवले आ गइने। ओ झोरन में से ऊ एगो झोरा उतारि के माई की ओर बढ़वने अउरी कहने, "लS ए काकी। तोहार तिउना-तरकारी।" हम घनेसर भाई से कहि बइठनि, "घनेसर भाई! लागता तरकुलवाँ की बाजारी गइल रहलS हS?" हमरी एतना कहते, घनेसर भाई बोलि पड़ने, "नाहीं भाई, तरकुलवाँ नाहीं पथरदेवाँ गइल रहनी हँ। आजु बिहनहीं, काकी चार-पाँचि किलो सरसों हमरी घरे दे अउवी अउरी कहि अउवी की बाबू, तनि बाजरी से कवनो निम्मन तिउना ले ले अइहS। बइसे हमरो कुछु कपड़ा-लत्ता किने बाजारी जाहीं के रहल हS त तोहरो तिउना ले ले अइनी हँ।"

घनेसर भाई की जाते, हम माई से पुछि बइठनि, "का रे माई! बिहनवे न झेमड़ा पर से दु गो लउकी, थोड़े घेवड़ा अउरी तिरोई तुड़ुवीं। ओकरी बादो तें बाजारी से तिउना मँगवले हS?" हमरी एतना कहते माई कहलसि, "तूँ जानत नइखS की बिहने बड़कू अउरी तोहार भउजी दिल्ली से घरे आवता लोग? का उहो लोग इहे गँवई तरकारी-भाजी खाई लोग? ओही लोगीं खातिर कुछ निम्मन तिउना मँगवनी हँ।" एतना कहि के माई तिउना से भरल झोरा उठवलसि अउरी घर में चलि गइल अउरी हम भँइसी के नादे पर से उकड़ा के लगनी दुहे।

भँइस दुहले की बाद हम दूध ले के घर में गइनी अउरी नदिया में दूध उझिलत समय माई से कहनी, "ए बेरी भइया से कहि के आपन आँखि बनववले की साथे-साथे एगो गैसवो किनवा लिहे ताकि चूल्हि फूँकले से तोके आराम मिलो। तोर आँखि खालि एही धुआँ-धक्कड़ की वजह से खराब भइल बा।" माई कहलसि, "अरे बाबू, बेचारू बड़कू तS खालि हमार अँखिए बनवावे खातिर भागल-भागल आवताने। तूँ उनकर चिठिया नाहीं पढ़लS का? ओ में हमार बड़कू साफ लिखले बाने की माई ए बेरी तोर आँखि बनवा देइबि अउर अगिला बेरी आइबि तS दु गो कोठरियो बनवा देइबि, आखिर कबले तोहSकुलि पलानी में रहबSकुलि।" माई जवने समय इ बाति कहति रहे ओ समय ओकरी आँखि में से खुसी के लोर चू-चू के ओकर अँचरा भिगो दे ले रहे। हमरो बुझाइल की अब हमार रोवाई रुकी ना अउर आपन आँखि पोंछत हमहूँ घर में से बाहर आ गइनी।

दूसरे दिन एकदम बिहनवे एगो रेक्सा ले के हम चउराहा पर पहुँचि गइनी अउरी भइया अउरी भउजी के बाट जोहे लगनी। ठीक आठ बजे देउरियाँ की ओर से एगो टेक्सी आ के चउरहा पर रुकलि। अब त हमरी खुसी के ठिकाना ना रहि गइल जब देखनी की ओमें से भइया अउर भाभी उतरSता लोग। अरे एतने ना, भउजी की कोरा में एगो बाबू देखि के हमार खुसी त अउर भी बढ़ि गइल काहें की हमरा मालूम ना रहे की हम काका बनि गइल बानी। हम दउरि के भइया अउर भउजी के गोर लगनी अउर ओ लोगन के बेग-ओग उठा के रेक्सा पर लादे लगनी। सामान-ओमान लदले की बाद भइया अउर भउजी रेक्सा पर बइठि गइल लोग। अउरी रेक्सहवा रेक्सा ले के गाँव की ओर चलि देहलसि। हमहुँ तीरछे दउड़त, भागत-परात घरे चलि अइनी।

रेक्सा की दुआरी पर पहुँचते भइया रेक्सा पर से उतरि गइने पर जब भउजी उतरल चहली त माई इसारा से मना क देहलसि। ऊ दउड़ि के घर में गइलि अउरी एक लोटा पानी, सेनुर-ओनुर ले के आइलि। हम समझि गइनी की माई झाक देहले की बादे भउजी के उतरे दी। छाक देहले की बाद माई दउड़ि के बाबू के भउजी की कोरा में से ले लेहलसि अउर भइजिओ के उतरे के इसारा कइलसि। भउजी रेक्सा में से उतरि के माई के गोड़ लगली अउरी एकरी बाद घर में चलि गइली। माइयो बाबू के ले के उनकरी पिछवें-पिछवें घर में चलि गइल। ओकरी बाद हम रेक्सा पर से सब सामान उतारि के घर में पहुँचा देहनी।

दु दिन की बाद के बाति हS, हम, भइया अउर भउजी दोगहा में बइठल रहनीजाँ। उहवें माइयो बाबू के तेल-बुकुवा से मिसत रहे अउरी घुघुआ-मन्ना खेलावति रहे। अचानक भउजी भइया से कहली, "गाँव में जेयादे दिन रहले के ताक नइखे। इ गँवई आबो-हवा बाबू के सूट नइखे करत। अगर इनके तबियत खराब हो जाई त का कइल जाई?" भउजी की एतना कहते माई टोकलसि, "अरे दुलहिन, इ तूँ का कहतारू? अबहिन त तोहSलोगन के अइले दुइयो-चार दिन नाहीं भइल। अबहिन हम अपनी बाबू के भरि आँखि देखियो ना पवनी, तवलेकहीं तूँ जाए-जाए हल्ला करे लगलू।" माई के इ कहल सुनि के तनि भउजी तेज आवाज में कहल सुरु कइली, "ए अम्मा, इ गाँव, घर खाए के दी? लइका के कुछु हो जाई त केहू आगे-पीछे ना आई। (तनि धीरा होके) अउरी हाँ, सहरियो में त घरवा सूने छोड़ि के आइल बानि जाँ। कहीं चोरी-ओरी हो गइल त के जबाब देई।" माई अबहिन कुछु कहो एकरी पहिलहीं भइया कहल सुरु कइने, "हाँ रे माई, तोर पतोहा ठीक कहतारी। अब त सहर में आपन खुद के मकानि बा। अबे दू कमरा उपरो बनववनी हँ। एगो गैस सिलिंडर रहल ह त गैस ओरा गइले पर तोरी पतोहा के स्टोपे पर खाना बनावे के पड़त रहल हS तS एगो अउरी गैस सिलेंडर किननी हँ। फोन लगववनी हँ। ए सब में बहुत पइसो खरच हो गइल बा। सब कुछ कीनि के खाए के बा। ए ही में लइका के बर्थडेउओ मनावे के बा। ओहू में हजार-दु हजार जइबे करी।"

भइया के इ सब बाति सुनि के हमरा रहाइल ना अउर हम पूछि बइठनी, "त का हो भइया, माई की आँखि के का होई?" हमरी एतना कहते फेन से भउजी सुरु हो गइली, "माई के आँखि बनवावल भागल जाता का? पहिले जवन जरूरी बा उ देखल जाव कि आँखि बनवावल जाव। जब सहर की घर के सब बेवस्था ठीक से हो जाई त ओकरी बाद अँखियो बनि जाई। हमनीजान इ थोरे कहतानीजाँ की आँखि ना बनी।" भइयो कहल सुरु कइने, "माई ते कवनो चिंता मति करु। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाई। अगिला बेर की अवाई में तोर अँखियो बनि जाई अउरी रहे खातिर दुगो घरो।" भइया के इ बाति सुनि के माई कहलसि, "बाबू, हमरा कवनो चिंता नइखे। कहीं रहजाS नीमने रहSजा। पर समय-समय पर घरो-गाँव के सुधि लेत रहSजा।" एकरी बाद माई हमरी ओर ताकि के कहलसि, "ए बाबू, जवन गोहूँ सुखवले बाड़S ओमें से दु बोरा कसि दS अउर हाँ दु बोरा धनवो कुटा दS। बड़कू के सहर में इ सब किनिए के खाए के पड़त होई अउरी अबहिन पइसा के अभाव बा।" माई के इ बाति सुनि के हम बोरा उठवनि अउरी चुपचाप बाहर चलि गइनी।

एकदिन की बादे का देखतानी की माई कइगो गठरी-सठरी बाँधSतिया। कवनो में मिट्ठा बा त कवनो में चिउड़ा अउरी कवनो में खटाई-अँचार। हमके देखते उ रोवाँसु हो के बोलि पड़लि, "ए बाबू, जा एगो रेक्सा बोलवले आवS अउर अपनी भइया-भाभी के चउरहा पर छोड़ि आवS, दुनुजाने तइयार हो गइल बाटे लोग।" हम चुपचाप घर में से बाहर निकलनी अउर एगो रेक्सा बोला लेअइनी। रेक्सा पर सब सामान-ओमान लादि के भइया अउर भउजी के चउराहा पर पहुँचावे खातिर चलि देहनी। चउराहा पर पहुँचि के ओ लोगन के देउरियाँ जायेवाली एगो टेक्सी में बइठा देहनी। भइया कहने, "बाबू, कवनो टेंसन मति लिहे। माई के ठीक से देख-भाल करिहे। हम फेनु जल्दिए लवटबि।" हमरी आँकि में से लोर बहे लागल अउरी हम ओ टेक्सी के तबले देखनी जबले ऊ हमरी आँखि से अन्हे ना हो गइल।

टेक्सी की अन्हे होते हमहुँ रोवाइन परान ले के घरे चलि अइनी। माई दुअरवें बइठल रहे। हम दुआरे पर पहुँचि के अबहिन भइंसी के नादे पर से उकड़ावत रहनी तवलेकहीं बहोरनो काका घूमत-घामत उहवें आ गइने। बहोरन काका माई से पुछने, "त का हो भउजी, अब आराम बा न। सुननी हँ कि तोहार पतोहा आइल बाड़ी।" अबहिन माई कुछु कहो तवलेकहीं हम कहि बइठनि, "ए काका, भउजी अउर भइया आइल त रहल ह लोग पर अजुवे चलि गइल ह लोग।" रमेसर काका कहने, "कवनो बाति ना, पइसा-ओइसा त देइए गइल होईलोग। पहिले अपनी माई के आँखि-ओंखि बनवा दS।" हम कुछु बोलनी ना चुप्पे रहि गइनीं। हमार चुप्पी काका के सब समझा देहलसि। उ कहने, "बतावS एइसन लइका की कमइले का फायदा बा की बुढ़ापो में सुख ना मिले।" एकरी बाद अबहिन केहू कुछ बोलो तवलेकहीं घनेसरो भाई उहवाँ आ गइने अउरी आवते बोल पड़ने, "अरे रमेसर काका, एतने नाहीं कमाइल-धमाइल त दूर, जवन घर में अनाजो-पानी रहल ह ओहू के बोरा में कसि-कसि के काकी उनकरी संघवे भेजवा देहली हई। अरे ओतना अनाज बेंचाइत त एगो का इनकर दुनु अँखिया बनि गइल रहित।" अरे इ का, घनेसर भइया की एतना कहते त माई आग-बबूला हो गइल अउरी कहतिया, "ए घनेसर, तनि कम बोलS। हमार आंखि बनो चाहें नाहीं ए से तोहरा का? अरे ए बेरी ना अगिला बेर बनी। हमार बाबू लोग निमने रहे, काँहे कि उहे लोग हमार आँखि बा लोग। हमार त सहरियो में मकानि बा, अउर बतावS न ए गाँव में केकरा बा?" एतना कहते माई अंचरा की कोना से आँखि पोंछत घर में चलि गइल।
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प्रभाकर पांडेय
लेखक परिचय:-
नाम: प्रभाकर पांडेय
जन्मतिथि- 01.01.1976
जन्मस्थान- गोपालपुर, पथरदेवा, देवरिया (उत्तरप्रदेश)
पिता- स्व. श्री सुरेंद्र पाण्डेय
शिक्षा- एम.ए (हिन्दी), एम. ए. (भाषाविज्ञान)

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