बीखी के बेहन - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

छींटला बिदहला के बादो
सलतन्त ना होखे बोवनिहार
मेहना आ खीस के निहारल
ओकर सुभाव होला
तजबीजत रहेला उ बोवनिहार
दोसरा के बघार
जेवना मे ठकच के डारि सके
बीखी के बेहन।

नेह छोह के बीचे
जवन होखेला
महीन सूता के बान्हन
उहो मसकि जाला
उघार हो जाला सऊँसे
पर पलिवार
घर दुवार आ सिवान
नया पुरान।

कान के काँच
जब एकहु गो हो जालें
घर पलिवार मे
नीको बतिया ज़बून बुझाये लागेले
दरकि जाले बिसवास के भीत
ऊभचूभ मे परि जाला परान
घर भर के
जब टुकुर टुकुर ताकि के हंसेला लोग।

ढेर लोगन के रुचेला
दोसरा के घर तूरल
हरियर पेंड़ के सोरी मे
मंठा डालल
बुझाता साँचो अपनापा के दियरी
बुझि गइल
नीक नीक लोगन के अतमा
साँचो मरि गइल।
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बीखी के बेहन - जयशंकर प्रसाद द्विवेदीलेखक परिचय:-
नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
संपादक: (भोजपुरी साहित्य सरिता)
इंजीनियरिंग स्नातक;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
चिरंजीव विहार , गाजियाबाद (उ. प्र.)
फोन : 9999614657
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