अपने ही देशवा में भइनी बिदेशिया रे
जाके कहाँ जिनिगी बिताईं ए संघतिया।
खेत खरिहान छूटल, बाबा के दलान छूटल
दिल के दरद का बताईं ए संघतिया।
तीज तेवहार गइल, जियल मोहाल भइल
मनवाँ में घूलत बा खँटाई ए संघतिया।
दक्खिन में दूर दूर, उत्तर में मार मार
कहाँ जाके हाड़वा ठेठाईं ए संघतिया।
गाँव घर मुँह फेरल, नाहीं केहु परल हरल
रोकले रुकत ना रोवाई ए संघतिया।
एहिजे के भइनी ना ओहिजे के रहनी रे
मन करे फँसरी लगाईं ए संघतिया।
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जाके कहाँ जिनिगी बिताईं ए संघतिया।
खेत खरिहान छूटल, बाबा के दलान छूटल
दिल के दरद का बताईं ए संघतिया।
तीज तेवहार गइल, जियल मोहाल भइल
मनवाँ में घूलत बा खँटाई ए संघतिया।
दक्खिन में दूर दूर, उत्तर में मार मार
कहाँ जाके हाड़वा ठेठाईं ए संघतिया।
गाँव घर मुँह फेरल, नाहीं केहु परल हरल
रोकले रुकत ना रोवाई ए संघतिया।
एहिजे के भइनी ना ओहिजे के रहनी रे
मन करे फँसरी लगाईं ए संघतिया।
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