हमनी के कश्मीर हऽ - दिलीप कुमार पाण्डेय

हमनी के कश्मीर हऽ,
कान खोल के सुन लऽ,
ई ब्रह्मा के लकीर हऽ,
तहरा बाप के ना,
हमनी के कश्मीर हऽ।

सैंतालिस के कंराइल,
भूला गइलऽ तूं,
पैंसठो में अजमाके,
लोला पइलऽ तूं।
हर बृद्ध कलाम हवे,
हर बच्चा बीर हऽ,
तहरा बाप के ना,
हमनी के कश्मीर हऽ।

थूक चटले रहऽ इयाद करऽ,
एकहत्तर में,
बाजल रहे भारत के डंका,
तब जगतर में।
सेनानियन का रक्त से,
खींचल डड़ीर हऽ,
तहरा बाप के ना,
हमनी के कश्मीर हऽ।

चंद पल में नाव,
नक्सा से मिट जाई,
ना तूं रहब ना
राष्ट्र तोहर रह पाई।
भारती का तन के,
लपेटाइल चीर हऽ,
तहरा बाप के ना,
हमनी के कश्मीर हऽ।
------------------------------------------------------

लेखक परिचय:-
नाम-दिलीप कुमार पाण्डेय
बेवसाय: विज्ञान शिक्षक
पता: सैखोवाघाट, तिनसुकिया, असम
मूल निवासी -अगौथर, मढौडा ,सारण।
मो नं: 9707096238

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.