मातृभूमि - दिलीप कुमार पाण्डेय

घरहीं अजर-अमर होखऽ
हम सीमा पर लडत रहेम,
मातृभूमि का रक्षा ला त
हम मारत आ मरत रहेम।

केहू शीश महल में बइठ
शान के जिनगी जिअता,
हमनी मरीं भूखे पिआसे
केहू मिनरल वाटर पिअता।


लह-तांगर देहो भइला पर,
उच्च शिखर पर चढत रहेम,
मातृभूमि का रक्षा ला त
हम मारत आ मरत रहेम।

रक्षके जब भक्षक बन जइहें
सोंची ना तब हाल का होई?
अपने खइहें मेवा मिष्टान
जनता का भेंटी ना खोई।


साधन बिन जो देश भहराइ
ओह दिन रउआ का करेम?
मातृभूमि का रक्षा ला त
हम मारत आ मरत रहेम।

बाल बच्चन के ईयाद
का हमनी का ना आवेला?
मुस्कात छवि नन्हका के
दोगुना साहस बढावेला।


जन-जन के सलामती ला
शत्रु के छाती बिन्हत रहेम,
मातृभूमि का रक्षा ला त
हम मारत आ मरत रहेम।

ऊंच परबत बा पहाड़ होखे
सागर बा बरफ के अंबार होखे,
तलफत रेगिस्तान का बालुओ में
कबो ना हमनी के हार होखे।


दुश्मनन के लेलकारत हरदम
शेर जस सदा दहाड़त रहेम,
मातृभूमि का रक्षा ला त
हम मरत आ मारत रहेम।

गरब से छाती फुलल बाबू के
सेना में पूत के भेज के,
माईयो पत्थर करेजा कइली
लाल के अपना तेज के।


चिंता नइखे मांग धोअइला के,
बैरी के खाल उघाड़त रहेम,
मातृभूमि का रक्षा ला त
हम मरत आ मारत रहेम।

घर आंगन गांव गरबित होई
गरबित होई छान्ह के नरिया,
शहीद होके जब देह पहुँची
बाजल रहे जंहवा थरिया।


झट से सौगंध ली नन्हका
अंतिम सांस ले लडत रहेम,
मातृभूमि का रक्षा ला त
हम मारत आ मरत रहेम।
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लेखक परिचय:-
नाम-दिलीप कुमार पाण्डेय
बेवसाय: विज्ञान शिक्षक
पता: सैखोवाघाट, तिनसुकिया, असम
मूल निवासी -अगौथर, मढौडा ,सारण।
मो नं: 9707096238

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