दोसरा के घर जरा के हाथ के सेंकले न बा ।
के आन का शुभ कीर्ति पर कीचड़ कबें फेंकले न बा॥
कहें हीरा चन्द ओझा चन्द कवि पृथिराज का -
दरबार में रहले कहीं इतिहास में लिखले न बा।
सन और सम्बत झूठ बा घटना सजी बेमेल बा
साँच कवनों बात रासों में कहीं बटले न बा।
का साँच बा का झूठ बा ई के इहाँ निर्णय करो
जब कि ओ पृथिराज के दरबार केहु देखले न बा।
एक बात जरूर बा हम कहबि ढोल बजाइ के
आजु ले ओझा कहीं केहु साँच कुछ भखले न बा।
आचार्य केशव दास पर बड़थ्वाल जी बानीं भिड़ल
मानों इहाँ खातिर कहीं मजमून कुछ अँटले न बा।
शुक्ल जी लिखनीं कि केशव का रहे ना कवि हृदय
जे जौन चाहो कहो तवने मुँह केहू छेंकले न बा।
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के आन का शुभ कीर्ति पर कीचड़ कबें फेंकले न बा॥
कहें हीरा चन्द ओझा चन्द कवि पृथिराज का -
दरबार में रहले कहीं इतिहास में लिखले न बा।
सन और सम्बत झूठ बा घटना सजी बेमेल बा
साँच कवनों बात रासों में कहीं बटले न बा।
का साँच बा का झूठ बा ई के इहाँ निर्णय करो
जब कि ओ पृथिराज के दरबार केहु देखले न बा।
एक बात जरूर बा हम कहबि ढोल बजाइ के
आजु ले ओझा कहीं केहु साँच कुछ भखले न बा।
आचार्य केशव दास पर बड़थ्वाल जी बानीं भिड़ल
मानों इहाँ खातिर कहीं मजमून कुछ अँटले न बा।
शुक्ल जी लिखनीं कि केशव का रहे ना कवि हृदय
जे जौन चाहो कहो तवने मुँह केहू छेंकले न बा।
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