मन तुम कसन करहु रजपूती।
गगन नगारा बाजु गहागहि, काहे रहो तुम सूती।
पांच पचीस तीन दल ठाढ़ो, इन सँग सैन बहूती।
अब तोहि घेरी मारन चाहत, जब पिंजरा मँह तूती।
पइहो राज समाज अमर पद, ह्वै रहु विमल विभूति।
धरनी दास विचारि कहतु है, दूसर नाहिं सपूती।
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गगन नगारा बाजु गहागहि, काहे रहो तुम सूती।
पांच पचीस तीन दल ठाढ़ो, इन सँग सैन बहूती।
अब तोहि घेरी मारन चाहत, जब पिंजरा मँह तूती।
पइहो राज समाज अमर पद, ह्वै रहु विमल विभूति।
धरनी दास विचारि कहतु है, दूसर नाहिं सपूती।
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नाम: धरनीदास
जनम: 1616 ई (विक्रमी संवत 1673)
निधन: 1674 ई (विक्रमी संवत 1731)
जनम अस्थान: माँझी गाँव, सारन (छपरा), बिहार
संत परमपरा क भोजपुरी क निरगुन कबी
परमुख रचना: प्रेम प्रकाश, शब्द प्रकाश, रत्नावली
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