मैं निरगुनिया गुन नहिं जाना - धरनीदास

मैं निरगुनिया गुन नहिं जाना।
एक धनी के हाथ बिकाना।

सोइ प्रभु पक्का मैं अति कच्चा।
मैं झूठा मेरा साहब सच्चा।

मैं ओछा मेरा साहब पूरा।
मैं कायर मेरा साहब सूरा।

मैं मूरख मेरा प्रभु ज्ञाता।
मैं किरपिन मेरा साहब दाता।

धरनी मन मानों इस ठांउं।
सो प्रभु जीवों मैं मरिजाउँ।
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लेखक परिचय:-
नाम: धरनीदास
जनम: 1616 ई (विक्रमी संवत 1673)
निधन: 1674 ई (विक्रमी संवत 1731)
जनम अस्थान: माँझी गाँव, सारन (छपरा), बिहार
संत परमपरा क भोजपुरी क निरगुन कबी
परमुख रचना: प्रेम प्रकाश, शब्द प्रकाश, रत्नावली

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