गउँवों में काँव काँव बा - आकाश महेशपुरी

बिगड़त जात सुभाव बा गउँवों में काँव काँव बा
रहिया चलत डेराला जियरा अइसन भइल दुराव बा
बिगड़त जात सुभाव........

मारा-मारी झूठे झगरा
दुःख से भरल मन के गगरा
आफत बीपत कुफुत सगरी
लागे जइसे बइठल पँजरा
बड़ी तेज बा झूठ के धारा सच वाली में ठहराव बा-
बिगड़त जात सुभाव........

लोगवा बोले मरिचा तरे
सुनि के बतिया जिउवा जरे
साझों-बिहाने होता हाला
कांपे करेजा थर थर डरे
पीपर नीचे बइठि के लोगवा लगा रहल अब दाव बा-
बिगड़त जात सुभाव........

बेइमानन के लागे नारा
बेईमान बनल आँखी के तारा
भलमनई त बिलखत बाटे
ओकरा उपरा चले आरा
भले-आदमी लोगवा बदे लउकत ना कहीं ठाँव बा-
बिगड़त जात सुभाव........

इहे सुनाता मारू-मारू
गारी दे लोग पी के दारू
आकाश महेशपुरी का करबऽ
छाती पीटे सं मेहरारू
भइल डाह के धूप घनेरी कहाँ प्रेम के छाँव बा-
बिगड़त जात सुभाव........
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लेखक परिचय:-
नाम: वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
जन्म तिथि: २०-०४-१९८०
पुस्तक 'सब रोटी का खेल' प्रकाशित
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
कवि सम्मेलन व विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान पत्र
आकाशवाणी से कविता पाठ
बेवसाय: शिक्षक
पता: ग्राम- महेशपुर,
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर,
उत्तर प्रदेश
मो नं: 9919080399

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