दलीदर - आकाश महेशपुरी

दीपावली के होते भोर
कि लागेला अइले सन चोर।

सुतले-सुतले कर दे बारे
जागेला ऊहो भिनुसारे।

सूपा लेके फट फट फट फट
बकरी जइसे पट पट पट पट।

खटर पटर खट खट खट घर घर
लोगवा खेदे खूब दलीदर।

घोठा घारी चउकी चारा
घर दुवार अउरी ओसारा।

चुल्ही तर आँगन पिछुवारे
लोगवा खूब दलीदर मारे।

सूपा के सुनि के फटकारा
पगहा तूरे भागे पाड़ा।

भागे बिल्ली बड़ी डरा के
चूहा बीयल में घबरा के।

सहमें चिरई कउवा तीतर
बाकिर नाहीं हटे दलीदर।

बैर भाव त जाते नइखे
मनवा कबो नहाते नइखे।

पसरल बाटे कइ कइ मीटर
झाकीं ना मनवा के भीतर।

मनवा के पाँको आ काई
सूपा से कइसे फटकाई।

राखीं पानी आ सच्चाई
सदगुण के साबुन से भाई।

मनवा के पहिले झटकारीं
मन में उहे दलीदर मारीं।

काम करीं खूबे सुरिया के
धन दौलत आई धरिया के।
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दलीदर - आकाश महेशपुरीलेखक परिचय:-
नाम: वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
जन्म तिथि: २०-०४-१९८०
पुस्तक 'सब रोटी का खेल' प्रकाशित
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
कवि सम्मेलन व विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान पत्र
आकाशवाणी से कविता पाठ
बेवसाय: शिक्षक
पता: ग्राम- महेशपुर,
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर,
उत्तर प्रदेश
मो नं: 9919080399

1 टिप्पणी:

  1. शब्द सुधार-
    पन्द्रहवां लाइन "भागे बिल्ली बड़ी डरा के" एकरा के "भागे बिल्ली चक्कर खा के" पढ़ल जाव।
    - आकाश महेशपुरी

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