फूँकी दिहले गाँव - विद्या शंकर विद्यार्थी

फूँकी दिहले गाँव केहू फूँकी दिहले घर बा
कइसे कहीं केकर छाती अइसन पत्थर बा

जुड़े जुड़े चलत रहे लोग गाँव आ घर के
साँझे बतियावत रहे हिल मिल जवर के
सुनुगे के आग इहाँ आखिर कवन जर बा।

आदमी त पनपत रहे आ पनपत अदिमियत
पाक साफ आदमी रहे आ पाक रहे नीयत
कांट कुश से बेशी अब आदमी के डर बा।

बोली से चिन्हाला नाहीं बोली से जनाला
काम तऽ ई घिनौना बाटे रोआँ गनगनाला
सनल सब लोहू से अखबार के खबर बा।

अइसन ना घिनौना काम होला शैतान के
कीमत ना लगावेला, इज्जत औरी जान के
मुँह बा ओकर सुरसा के अदिमी कवर बा।
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लेखक परिचयः
नाम: विद्या शंकर विद्यार्थी
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास ( सासाराम )
बिहार - 221115
मो 0 न 0 7488674912

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