सनक - डा. गोरख प्रसाद मस्ताना

सोलह बरीस हवे जादू या टोना
तन होला चानी चानी मन होला सोना
हियवा के हलचल नजरिये बतादी
नजरीया के छलबल पुतरिये बतादी।

नैन के मैना फुदुक फुदुक जाला
रसरी के फसरी में कहाँउ बन्हाला
बड़ा उत्पाती ह ई काँची उमीरीया
उमीरीयाके उमकल चुनरिये बता दी।

बिरहा के आग काहे देहिया जरावे
पानी के धार काहे पसेना चूआवे
सवाँचल बेकार बा ई पपीहा से जाके
सवनवा के सनकल बिजूरिये बता दी।

बिछिया के भाग देखीं चूमे पाँवगोरी के
झूमका झूलेला झूमीं रहेला अगोरी के
पायल के रूनझून देखी चूरिया के छनछन
कँगनवा के खनकल सेजरिया बता दी

कजरा नयनवा के लाली अधर के
ताके निहारेला जे, जीए मर मर के
बस में रहे ना काहें लालसा के डोरी
करेजा के धड़कलसँसरिये बता दी

गरिमी बेसरमी त बड़ा मुँह जोर हऽ
पूस के महिना छली कपटी आ चोर हऽ
माघ मे ना केहूँ काहे रहेला अकेले
जड़वा के कनकल गुदरिया बता दी
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लेखक़ परिचय:-
नाम: डा. गोरख प्रसाद मस्ताना
जनम स्थान: बेतिया, बिहार
जनम दिन: 1 फरवरी 1954
शिक्षा: एम ए (त्रय), पी एच डी
किताब: जिनगी पहाड़ हो गईल (काव्य संग्रह), एकलव्य (खण्ड काव्य),
लगाव (लघुकथा संग्रह) औरी अंजुरी में अंजोर (गीत संग्रह)
संपर्क: काव्यांगन, पुरानी गुदरी महावीर चौक, बेतिया, बिहार

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