अध्याय - 7
एकर दुर्दशा देखि करि के केहु देवी जी के दया भइल।दुख दुबिधा दूर गइल सगरे आ जनम फेरु से नया भइल॥1॥
खेती के पशु के रखवारी कुक्कुर हमार अब पाइ गइल।
बड़का कुकुरन से मेल जोल मोंका पर कामे आइ गइल॥2॥
ई कुक्कुर खूबे बूझता कुछ गोसयाँ रिसियाइल बाड़े।
एसे बाहर कम निकलत बा, बा रहत सदा आड़े आड़े॥3॥
बाहर निकले का नावें त अब बहुते अधिक सहमि जाता।
एह कारन से मेला बजार में घूमे बहुते कम जाता॥4॥
यदि जातो बा त साथे में राइफल कान्हा पर तान तान।
आगे पाछे राखत बाटे दस पाँच मिलिटरी के जवान॥5॥
जवना घरमें ई टीकत बा ओह घर का आस पास कगरी।
हाथे में भरि भरि के बनूखि बा घूमत रहत लाल पगरी॥6॥
सवैया:-
अब काटि दे ई कुकुरा केहु के तब मानीं अभागि ओके घेरले बा।
एकरा कटला के दवाई इहाँ अबे ना कतहीं खोजले हेरले बा।
अब जात न बा केहु का दुवरा पहिले जहाँ फेरी सदा फेरले बा।
अब त सनकी बुझि के एकरा के पुलीस बनूखि ले के घेरले बा॥7॥
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धरीक्षण मिश्र
अंक - 108 (29 नवम्बर 2016)
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