एक्के पैना - सौरभ सतर्ष

एक्के पैना से सबके चरावल गईल।
नाही मानल त जबरी मनावल गईल।।

आग लागल बा देहिया में ई सोच के।
हमरा ढ़िबरी के काहे बुतावल गईल।।

हई चमकsता कोठी पसीना से हमरा।
तब्बो झोपड़ी के काहे जरावल गईल।।

सेवकाई में बीतल बा जिनगी जेकर।
काहे कुकुर नियन दुरदुरावल गईल।।

ताज केहूओ के माथे सजे का फरक।
दुःख हमनिए बदे बा बनावल गईल।।

बाटे कुदरत के गजबे करिश्मा ए बाबू।
दीन-दुखियन के हरदम सतावल गईल।।

रो-रो, हँसे ले 'सतरष' कहे वीर जागs।
शक्ति के आगे माथा झुकावल गईल।।
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लेखक परिचय:-

नाम: सौरभ सतर्ष
पता: नरईपुर, बगहा
पश्चिम चंपारण, बिहार
मो• नं•- 9415480072




अंक - 108 (29 नवम्बर 2016)

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