एक्के पैना से सबके चरावल गईल।
नाही मानल त जबरी मनावल गईल।।
आग लागल बा देहिया में ई सोच के।
हमरा ढ़िबरी के काहे बुतावल गईल।।
हई चमकsता कोठी पसीना से हमरा।
तब्बो झोपड़ी के काहे जरावल गईल।।
सेवकाई में बीतल बा जिनगी जेकर।
काहे कुकुर नियन दुरदुरावल गईल।।
ताज केहूओ के माथे सजे का फरक।
दुःख हमनिए बदे बा बनावल गईल।।
बाटे कुदरत के गजबे करिश्मा ए बाबू।
दीन-दुखियन के हरदम सतावल गईल।।
रो-रो, हँसे ले 'सतरष' कहे वीर जागs।
शक्ति के आगे माथा झुकावल गईल।।
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नाही मानल त जबरी मनावल गईल।।
आग लागल बा देहिया में ई सोच के।
हमरा ढ़िबरी के काहे बुतावल गईल।।
हई चमकsता कोठी पसीना से हमरा।
तब्बो झोपड़ी के काहे जरावल गईल।।
सेवकाई में बीतल बा जिनगी जेकर।
काहे कुकुर नियन दुरदुरावल गईल।।
ताज केहूओ के माथे सजे का फरक।
दुःख हमनिए बदे बा बनावल गईल।।
बाटे कुदरत के गजबे करिश्मा ए बाबू।
दीन-दुखियन के हरदम सतावल गईल।।
रो-रो, हँसे ले 'सतरष' कहे वीर जागs।
शक्ति के आगे माथा झुकावल गईल।।
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अंक - 108 (29 नवम्बर 2016)
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