ए हमारे प्रभु तुम गती अलख अती।
रोटी पर नुन जुरत नहीं जाको, लाखन बरत बती॥
बड़-बड़ सीध गीध होइ गइलन, अगती पावत गती।
अइसन गढ़ कंचन पर लंका, रहेब ना एको रती॥
मांझ दुआरी कंस पछारी, छनहीं में प्रान हती।
गरब प्रहारी असुर संहारी, दुखित रहेउ धरती॥
राजा राज तजि नाम तुहारे, सुमिरत जोग जती।
जे जे तुमको जानि बिसारेउ, ताकर कवन गती॥
लछिमी सखी अवलम्ब तुम्हारो, एगो तिरथ बरती।
निसि दिन हरेत पंथ तिहारो, बिरह अनल जरती॥
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रोटी पर नुन जुरत नहीं जाको, लाखन बरत बती॥
बड़-बड़ सीध गीध होइ गइलन, अगती पावत गती।
अइसन गढ़ कंचन पर लंका, रहेब ना एको रती॥
मांझ दुआरी कंस पछारी, छनहीं में प्रान हती।
गरब प्रहारी असुर संहारी, दुखित रहेउ धरती॥
राजा राज तजि नाम तुहारे, सुमिरत जोग जती।
जे जे तुमको जानि बिसारेउ, ताकर कवन गती॥
लछिमी सखी अवलम्ब तुम्हारो, एगो तिरथ बरती।
निसि दिन हरेत पंथ तिहारो, बिरह अनल जरती॥
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लेखक परिचय:-
नाम: लछमी सखी
काल: 1841-1914
जनम: अमनौर, सारन, बिहार
सखी सम्प्रदाय के संत
अंक - 102 (18 अक्तूबर 2016) काल: 1841-1914
जनम: अमनौर, सारन, बिहार
सखी सम्प्रदाय के संत
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