कंकाल के रहस्य - 5 - अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"

'रउआ त एकदमे न पगला गइल बानी. ठलुआ के एतना बड़ काम? गोबर पाथे वाला भला ई सब कइसे करी?'
पंडिताईन पाड़ेजी के सामने चाय राख के अपपनहूं उनका सामने बइठ गइली. उनको हाथ में चाय के गिलास मौजूद रहे.
'गलत बात बा मलकिन. ऊ बेचारा गोबर एह से पाथत रहे कि अनाथ बच्चा के पढ़ावे लिखावे वाला केहु ना रहे. सही बा कि ओकरा पास बुद्धि तनी कम बा पर दिमाग ओकर खूब चलेला. सबसे बड़ बात ई कि जवन बतावल जाला ऊ अच्छा तरह से दिमाग में बइठा ले ला. ओकरा बारे में त तोहरा के अइसन विचार ना राखे के चाहीं.' पाड़ेजी पंडिताईन के समझावे खातिर लम्बा चौड़ा भाषण दे दिहले जेकरा के सुन के पंडिताईन अउरो जल भुन गइली.
'हमरा का बा. ओकरा के बइठा लीं अपना सिर पर. एगो निबुआ का तोड़ लिहलीं नारियल तूड़े के सपना देखाये लागल.'
'हमरा ई नइखे बुझात कि तोहरा एतना गुस्सा काहे बा? जे फिर से आपन बीज मंत्र सुनावे लगलू.' पाड़ेजी पंडिताईन के गरम देख के सवाल कइले. काहे से कि उनका अंदाजा हो गइल रहे कि पंडिताईन के आज के गुस्सा के कारण कुछ अउर बा.
' हमरा के कहाइल रहे कि हम ठलुआ के भूल जाईं, अउर घर में एगो महरी आवे लागी. बाकि एक हफ्ता गुजर गइल.' पंडिताईन अपना गुस्सा के कारण बतवली, बाकि पाड़ेजी के उनका कहला पर यकीन ना भइल.
'एक ना दस महरि आवे लागी लोग पर हमरा नइखे बुझात कि तू महरि खातिर परेसान बाड़ु? काहे से कि हमरा मालुम बा तोहरा के कवनो महरि के जरुरत नईखे. से साँच साँच बोल द कि का बात बा.'
पाड़ेजी के सवाल पर पंडिताईन उनका ओर देखे लगली. उनका चेहरा अउर आँखि के हाव भाव से लागत रहे कि ऊ कवनो बात के लेके परेशान बाड़ी.
'रउआ ठलुआ के अइसन काम काहे देले बानी? ओकरा के कुछ हो जाई तब?' ई सब कहत के पंडिताईन के आँख से माई के ममता वाला भाव साफ देखात रहे. जेकरा के लाख छिपावे के कोशिश कइला के बादो पंडिताईन छिपा ना पइली अउरी आँखी के लोर बहरी आइये गइल. एकरा बाद उनका से उहँवा ना रह गइल आ ऊ चुपचाप भितरी चल गइली.
'वाह रे औरत! शायद अइसने समय खातिर कहल गइल बा, त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम दैवो न जाने.' पंडिताइन के गइला क बाद पाड़ेजी बड़बड़इले. फिर उहो चाय के आखिरी घूँट मार के भितरी अलंग चल गइले.
अगिला दिना घटना स्थल वाला इलाका में एगो पागल भिखारी घुमे लागल. दिन भर एहर ओहर घुमला के बाद साँझ खानी एक पेड़ के नीचे आपन कुटिया बनावे लागल त ओकरा एगो सिपाही वइसने हालत में ओकरा पँजरा से गुजरत देखाइल जइसन कि पाड़ेजी ठलुआ के तब बतवले रहन जब ऊ दुनो लोग में इ बात के चर्चा होत रहे कि ठलुआ के खाना कइसे मिली. ऊ भिखारी आव देखलस ना ताव बस सिपाही से उलझ गइल़.
'हमरे राजमहल खातिर पकवान. हमरे राजमहल खातिर पकवान.' बड़बड़ात ऊ सिपाही से थैली छीने क कोशिश करे लागल.
अब जाके समझ में आइल कि ई भिखारी अउर केहु नाही बल्कि ठलुआ ही बा. ठलुआ के एह भेष में एक बार त पाड़ेजी भी न पहचान पावें. सिपाही बाबू भी पहिले त ठलुआ के विरोध कइले आ देखावा खातिर ओकरा के एक दू थप्पड़ मरबो कईले. पर जब ठलुआ उनका हाथ से थैली छीन के ओकरा भीतर के चीज जूठार दिहलस तब सिपाही महाराज दिखावा खातिर ओकरा के एक तरफ धकेल के जेहर से आइल रहे ओहरे चल गइल. ठलुआ आराम से थैली लेके अपना कुटिया में आ गइल अउरी थैली के एक तरफ रख के फिर आपन कुटिया के दुरुस्त करे लागल.
ठलुआ के कारनामा से अनजान पाड़ेजी सिगरा थाना पर सिंह साहब के पास बइठल रहन. उनका हाथ में तीन फाइल रहे जेकरा के बारि बारि से देखला के बाद पाड़ेजी कुछ सोचे लगले. फिर अचानक तीन में से एगो फाइल निकाल के गौर से पढ़े लगले.
'सिंह साहब हमरा ई फाइल काम के लागत बा. रउआ सैदपुर थाना में सूचना दे दीं कि हम उहाँ काल्हु जायेब अउर ऊ लोग हमार पूरा मदद करे.' पाड़ेजी सिंह साहब से कहले त ऊ आश्चर्य से उनका के देखे लगले'
'गमछाजी, आप जानत हउआ नऽ कि ए मामले में पुलिस कातिल के पकड़ चुकल हव?' आपन आश्चर्य के कम करे खातिर सिंह साहब सवालो कइले.
'काहे ना. लेकिन एह मामिला में पुलिस अबले लाश बरामद ना कर पइले बिया. वइसे त हम तीनो फाइल के मामिला के गौर से देखब. पर हमरा पहिला पहिल इहे फाइल काम के लागत बा. वइसे ई फाइल के पहिले चुने खातिर एगो अउर कारण बा.' पाड़ेजी फाइल के चुनला के कारण बता के तनी खामोश हो गइले त सिंह साहब उनका के अइसे देखे लगले कि जाने चाह रहल हो कि अउर का कारण बा?
'कवन कारण..?' सिंह साहब सवाल कइले.
'एह फाइल के गायब औरत के शादीशुदा होना. काहे से कि कंकाल के पास से जवन जवन चीज बरामद भइल बा ओह हिसाब से कंकाल वाली औरत के शादी शुदा होखे के चाहीं. जबकि बकिया दू फाइल वाला लइकी लोग कवनो ना कवनो वजह से कुँवार रहे लोग.'
पाड़ेजी के जवाब सुन के सिंह साहब के आँखि में पाड़ेजी के प्रति इज्जत के बढ़ोतरी साफ लउके लागल.
'जी हम समझ गइली. आप जरिको चिन्ता मत करा. हम सैदपुर थाने में खबर कर देब.' सिंह साहब कहले.
एकरा पहिले कि पाड़ेजी कुछ अउर कहते उनकर मोबाइल बाजे लागल. पाड़ेजी मोबाइल देखले त ठलुआ के नाम स्क्रीन पर चमकत रहे. पाड़ेजी आश्चर्य से फोन के स्क्रीन पर ही समय देखले त शाम के ७ बजत रहे.
'ठलुआ के फोन एह समय?' पाड़ेजी दुविधा में बड़बड़इले फिर सिंह साहब से ' माफ करेब सिंह साहब हमरा अबगे जाये क पड़ी.' कहत पाड़ेजी सिंह साहब के जवाब के इंतजार कइला बिना बहरी चल गइले.
ए समय ठलुआ पाड़ेजी के काहे फोन कईले रहे. का सचमुच ओकरा हाथ कवनो खास सुराग लागल बा? आखिर का बा ठलुआ के फोन के राज? पढ़ी जा अगिला अंक में. 
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अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"

 








अंक - 90 (26 जुलाई 2016)

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