धान के रासि पर गाई के गोबर के,
बना के बढ़ावन धरा ता की नहीँ?
पुअरा के ऊपर बिछौना बिछावला पर
मोटकी रजाई दाना ता कि नाहीं?
मडई में टाटी गाई के ओढ़नी आ
बछरू के गाँती बन्हाता कि नाही?
भूसा आ पुअरसा के घारी में धुँआरहां
दुआरे पर कउड़ा बराता कि नाही?
धान के भूसी के तलभल आगी में
सुथनी आ कोन डलाता कि नाही?
नहईला के बाद, कुछु खईला के बाद
पुअरा के लहास बरा ता कि नाहीं?
हाथ-गोड कठुआए त घर में तापे खातिर,
हाथ के दस्ताना, मूडी के टोपी,
फुल बाहीं के सुईटर बीना ता कि नाहीं?
नौका नेवान खातिर, साठी कुटाए खातिर
ओखर पहरुआ धोआता कि नाहीं?
दही से खाए खातिर नौका धान के
सयगर चिऊरा कुटा ता कि नाही?
गागल नेबुआ में मुरई आ मरिचा के
सउना घामे धरा ता कि नाहीं?
संवकेरे आगी बार के तसली तरीआ के
चुल्ही प अदहन धरा ता कि नाही?
लौना चिपरी जोड़ के आगी बटोर के,
खिचड़ी के धान उसिनाता ता कि नाहीं?
भाजी खोटाता, मोटर नोचाता
आलु भर के मकुनी सेका ता कि नाहीं?
जतरा देखा ता, पांयेत धरा ता
मेहरारुन के खोईछा भरा ता कि नाहीं?
भईया के बोलावला के, भउजी के गवना के
खरवांस बाद साईत धरा ता कि नाहीं?
डोली से उतरला पर भउजी जे में डेग डलिहन
कढाईदार दउरी बीना ता कि नाहि?
गोभी आ टमाटर के छोटी-छोटी ओधी में
नियम से पानी दिया ता कि नाहीं?
भूसा जवन सरल बा उ गोबर में मिला के
चिपरी आ गोहरा पथा ता कि नाहीं?
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लेखक परिचय:-
नाम: प्रमोद शुक्ल "पिपासु"
पिता – स्व. हेमनारायण शुक्ल
गाँव व डाकखाना – जिगना दुबे
अंचल – भोरे, जिला – गोपालगंज (बिहार)
शिक्षा: पी एच डी (संस्कृत)
संप्रति: संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान, दिल्ली
भाखा: भोजपुरी, हिन्दी अउरी संस्कृत
परमुख रचना: ओल्हा-पाती (भोजपुरी) अउरी एक युवा मन (हिन्दी)
अंक - 91 (02 अगस्त 2016)
सुघर रचना, एकदम आपना माटी के याद दिला दिहल।
जवाब देंहटाएंसुघर सुरचना
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