गमछा पाड़े -4 - अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"

पाड़ेजी के बात सुन के सबकरा चेहरा पर बेचैनी आ गइल. केहू के कुछ ना बुझाइल कि का कहल जाव, बाकि राजन से ना रहल गइल अउरी ऊ तमतमा के पाड़ेजी से सवाल कईलस - 'आप कहे का चाहत हउआ ? चाचाजी के कतल ममता कईले हव?'
'अबहीं हम कुछ कहत कहाँ बानी जवाईं बाबू. अबहीं त हम सिरिफ पूछत बानी. बाकि जब खाली पूछला पर ईंहाँ के ई हाल बा त कहला पर का होखी ई सोचे के बात बा. वइसे आपके जानकारी खातिर बता दीं कि ममता से ई कतल तबहीं हो सकेला जब ओकरा साथे आप जईसन मरद भी होखे. काहे से कि ममता अकेले अपना बूता पर महादेव बाबू के दिल के दौरा पड़ल शरीर के पंखा से ना लटका सकेले. ई बात सुन के राजन के चेहरा पर परेशानी आ गइ देख के गमछा पाड़े आगा कहलें, का हो गइल जवाईं बाबू ? कहीं हमार बात साँच त नइखे न?'
'जीऽऽऽ?' - एतना सुने का बाद राजन के चेहरा से लागे लागल जइसे कि सचमुच उहे खूनी होखे.
'बस कर त गमछा पाड़े! सबके मालूम हव कि भईया के लाश जवना कमरा में पंखा से लटकत मिलल ऊ कमरा अन्दर से बन्द रहे जवन कि पुलिस के आवे के बाद तोड़ल गयल. बाते करे के हव त कुछ ठोस बात करा. ई सब तमाशा करे के जरुरत नाही हव.' - आखिर में बुआजी से ना रहल गइल अउर उ तमतमात गमछा पाड़े पर बरस पड़ली.
'बहिना जेतने बड़ गुत्थी रहेला ओकरा के सुलझावे में ओतने बड़ नाटक के जरुरत पड़ेला. बाकि बात जब ठोस बात के आ ही गइल बा त हम एतने कहेब कि जदि कातिल ई घर के केहु बा त ऊ सिर्फ अउर सिर्फ राउर ई साहबजादा हो सकेले.' ई बात कह के पाड़ेजी बुआ के लड़िका मोहन के सामने ठाड़ हो जात बाड़े. मोहन के हालत त राजनो से खराब हो गइल. ऊ आपन नजर पाड़ेजी से चोरावे लागल. 'का मोहन बबुआ, तोहरो बहिना के तरह से कुछुओ कहे के बा कि अइसहीं भकुआ भकुआ के एन्ने ओन्ने देखत रहबऽ.'
'बाकि गमछा चच्चा..?' ममता कुछ कहे के चाहत रहे कि पाड़ेजी इशारा से ओकरा के बोले से रोक के खुद बोले शुरु कइले, 'केहु के कुछ कहे के जरुरत नइखे. हम सबकरा शंका के जवाब देब बाकिर पहिले मोहने बबुआ पर शके ना बलुक यकीनो के कारण बतायेब. -
'कारण नम्बर एक - हत्या के पहिले वाला हफ्ता में महादेव बाबू अउरी मोहन बबुआ में पइसा के ले के तकरार.' एतना कहला के बाद पाड़ेजी एक पल खातिर सबकर चेहरा देखले अउरी फिर कहे शुरु कइले -
'कारण नम्बर दू - कउनो कारन से मोहन बबुआ के जेतना पईसा के जरुरत ओतने पईसा महादेव बाबू के अलमारी से गायब होना.' एतना सुनला के बाद मोहन के चेहरा देखे लायक रहे अउरी सब पाड़ेजी के आश्चर्य से देखत रहे.
'कारन नम्बर तीन. मोहन बबुआ के ओतने पईसा केहु के देत खानी खुद ठलुआ अपना आँखि देखले बा.' एतना कहला के बाद पाड़ेजी मोहन के आँखि में आँख गड़ा के पूछले, 'का हो बबुआ हम साँच कहत बानी नू?'
सब खामोशी से गमछा पाड़े के बात सुनत रहे बाकि मोहन के माई से ना रहल गइल, अउरी ऊ तिलमिला के गुस्सा में आपन सवाल कइली - 'लगत हव कि पाँच लाख के बात सुन के तोहार दिमाग सचमुच में खराब हो गयल हव. कब्बो कहत हउआ कि भईया के मौत दम घुटले के कारण से भयल अउरी कब्बो कहत हउआ कि मोहन कातिल हवऽ. जबकि भईया के लाश अन्दर से बन्द कमरा से बरामद भयल हव.'
वइसे ऊँहा मौजूद सबका चेहरा से ईहे लागत रहे कि केहु के गमछा पाड़े के बात नीक ना लागत रहे, बाकि पाड़ेजी के चेहरा से साफ लागत रहे कि ऊ आजे कातिल के पकड़वा दीहें.
'ठीक बा त अब हम पहिले ई साबित करेब कि भीतर से बन्द कमरा में से कातिल (मोहन के घुरत कहलन) बहरी कइसे आइल?' एतना कहला के बाद पाड़ेजी ममता के ओर मुखातिब भइले. 'ममता बिटिया हम ऊ कमरा मे चले चाहब.'
'जरुर.' कह के ममता एक तरफ चल दिहलस आ पाछा पाछा सब लोगो. एगो कमरा के बहरी ममता खाड़ हो गइल अऊरी बतवलस कि इहे कमरा बा. पाड़ेजी कमरा में जाये लगले त सब लोग ऊनकरा पीछे जाये लागल लेकिन पाड़ेजी सबकरा के बहरिये रोक दिहले अउरी खुद अकेले अन्दर चल गइले. साथे साथ भीतरी से दरवाजा बन्द कर दिहले. पाँच मिनट से ज्यादा बीतला पर सब केहु आपस मे खुसुर पुसुर करे लागल आ जब ना रहल गइल त सब लोग के बीच दरवाजा खटखटावे के तय भइल.
एकरा पहिले कि दरवाजा खटखटा के पाड़ेजी से जी से दरवाजा खोले के कहाइत, पाड़ेजी बहरी से आके सबकरा के चउँका दिहले.
'दरवाजा खटखट करे के दरकार नइखे ममता बिटिया. हम ईहँवा बानी.'
ई आवाज पर सब पलट के देखत बा त पाड़ेजी बहरी से अन्दर आवत रहले आ आके बुआजी के पास खाड़ हो गइले. सब उनकरा के अचरज से देखत रहे, अचरज में बुओजी रही बाकि उनकर चेहरा देख के लागत रहे कि ऊ अबहीओ मोहने क तरफ से कुछ कहे चाहत रहली. एकरा पहिले कि ऊ कुछओ कहती पाड़ेजी हाथ के ईशारा से ऊनका के रोक दिहले. 'बहिना जवनो पुछे ताछे के बा तनिका देर बाद पूछ लीहऽ.' फेर सबकरा से कहलन, 'अब आप सब लोग ई समझ लीं जा कि हम लोग दरवाजा तूड़ के अन्दर जात बानी जा.' कहके पाड़ेजी दरवाजा खोल दिहले अउरी सबकरा साथे भीतरी चल गइले.
अन्दर जाके सब कमरा के आश्चर्य से देखे लागल काहे से कमरा के दुनो खिड़की बन्द रहे आ पाड़ेजी इत्मीनान से पान मसाला खाये लगले. सब केहु कभी कमरा के त कभी पाड़ेजी के देखे लागल.
'जेकरा जेकरा शक होखे ऊ पहिले निमना से जाँच लेव कि कमरा के खिड़की अन्दर हाली ठीक से बन्द बा कि ना. बहिना हम त कहेब कि सबसे पहिले तू ही जाँच लऽ.'
बुआजी खिड़की जाँचे लगली अउर जब तय हो गइल कि खिड़की अन्दर से बन्द बा त उनका माथे पसीना छूटे लागल. पाड़ेजी कबो बुआजी के देखे लगले आ कबो मोहन के. मोहन के त समुझे में ना आवत रहे कि ऊ का कहे. ममतो एकदमे खामोश मगर अचरज से मोहन, बुआजी अउरी पाड़ेजी के बारी बारी से देखे लागल. कमरा के खामोशी पाड़ेजी के जवन आवाज से टूटल ओकरा के सुन के आ ओकर प्रतिक्रया देख के सब अउरी आश्चर्य में पड़ गइल. जबकि पाड़ेजी के चेहरा पर निश्चिन्तता के भाव बरकरार रहे. मानो पाड़ेजी मामला सुलझा दिहले.
आखिर पाड़ेजी कइले का?
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अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"











अंक - 80 (17 मई 2016)

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