बरखा के रिमझिम फुहार
अंग-अंग सहला गइल
बकुलन के उज्जर कतार
तन-मन बहला गइल।
पर्वत पर रूई के मेघ
सुनेले यक्षी-संदेश
धीरे से पुरवैया मीत
छुएले गोरी के केश।
अमृत भरल जल-धार
धानन के नहला गइल।
नदियन के आइल उठान
कदराइल झीलन के देह
बोरो जे उगल अकास
देखि रहल माटी सस्नेह।
टूटल बा मोतिन के हार
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