गुण्डा - मृत्युंजय अश्रुज

साइकिल मिस्त्री किशनलाल के छोट परिवार में खुशी अपार रहेकाहे कि किशनलाल आ उनकर पत्नी के सभसे बडहन पूंजी रहे सन्तोष। ई दुनो प्राणी अपना पांच साल के बेटा मदन का साथे साइकिल मरम्मती के मामूली कमाई में भी बहुत खुश रहे लोग। कवनो हाय-हाय ना रहे। बेटा के पढाई आ खुशी के ख्याल रखते हुए भी भविष्य ला दस पांच बचा लेवे लोग आ प्रेम शान्ती से दिन गुजारत रहे लोग। छोट शहर के एक तीन मुहानी परबिना छान छप्पर के एक दुकान रहे। साइकिल मरम्मती के औजार कुछ स्पेयर पार्ट बस एतने पूंजी रहे। रोज दुकान लगावस आ रोज समेट के चल देस। दुपहरिया के खाना लेके कजरी दुकान पर जास। बगल के कनवेन्ट से छूटल मदन आ किशनलाल के खिआके बेटा का साथे घरे वापस आ जास। बेटा मदन भी बहुत अनुशासित आ कुशाग्रबुद्धि लडीका रहे। हंसी खुशी परिवार के दिन मजे में गुजरत रहे। 
वैसे त भगवान के दीनानाथ दीनबंधु कहल जाला लेकिन कभी कभी उहे गरीबन के खुशी पर मुसीबत के बज्र गिराके अपना नाम आ अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा देवेलन। एक दिन किशनलाल दुकान पर साइकिल मरम्मत करत रहन कि एक बेकाबू बोलेरो उनका के रौंद देलेस। बेटा आ बीबी से ना कुछ कहऽ, ना सुनऽ पवलें; दरे पर प्राण छूट गइल। सोच सकीले वो परिवार पर का गुजरल होई। कजरी त रोअत रोअत बेहोश हो जाय। मदन बार बार बाप के बेजान देहके झकझोरे। उठे आ बोले के कहे,
"पापा उठs ना! बोलs ना पापा..! काहे चुप बाडs..? के तोहरा के मरलेस हमराके बताव हम ओकरा के मारेम...। देखs ना माई केतना रोअत बीआ ..ओकर तबिअत खराब हो जाता। आज काहे तोहरा दया नइखे आवत। पापा…! पापा!" 
कहके रोये लागे आ पापा के लहूलुहान चेहरा चूमे लागे। ई करेजा छलनी करेवाला दृश्य देखके सभके आंख नम हो गइल। आसपास के औरत आके कजरी आ मदन के सभललेस। जे हो गइल ओपर केकर बस। 
समय सभसे बडहन मलहम हवे। बोलेरो एक दबंग आदमी के रहे दु चार हजार कजरी के दिअवा के पुलिस भी ममला दबा देहल। कानूनी कारगुजारी का सामाजिक परम्परा निभाके किशनलाल के क्रियाकर्म हो गइल। जे कुछ जमा पूंजी रहे ओकर अधिका क्रियाकर्म में लाग गइल। अब आगे के दिन कइसे कटी सोचि के कजरी के दिल डूबे लागे। बेटा के मुंह देखि कजरी आपन दुख भुला गइली। कजरी के अभी उमर ही का रहे। तीस के लगभग उमर लेकिन भगवान ओकरा के रूप रंग आ शरीर अइसन देले रहन जइसे आपन सुन्दरता के सारा भंडार ओकरे पर लुटा देले होखस। जे कजरी के हकीकत ना जानत होई उ ओकरा के कुंआरे समझ सकत रहे। कजरी चाहीत त कोई ओकर हाथ थाम सकत रहे लेकिन किशन के याद आ अपना आ किशन के निशानी मदन के सहारे जीवन काट देवे के मन में ठान लेले रहे। लेकिन आगे के जीवन मदन के पढाई ला कुछ ना कुछ त करे के रहे। 
कजरी कुछ घर में चौका बरतन झाडू पोंछा के काम शुरू कर देलेस। समय कटे लागल। कजरी जवना-जवना घर में काम करे ओह में एक घर जिला परिषद सदस्य मानिकलाल के रहे। मानिकलाल जब कजरी के रूप आ जवानी देखले त कजरी के पावे ला उ बेचैन हो गइले। पहिले त कवनो ना कवनो प्रलोभन के नाम पर कजरी के नजदीक जाए के चहलें लेकिन कजरी आपन मजदूरी छोड कबो कुछ गवारा ना कइलस। तब मानिकलाल प्रेम प्यार के नाम पर पटावे के कोशिश कइले। तबो दाल ना गलल तs जबरदस्ती करे के ठान लेलें। मानिकलाल के पत्नी मोटझोट आ सुन्दरता का नाम पर समान्य रही। दूगो बेटा अउरी एगो बेटी रहे मानिकलाल क। दूनो बेटा कहीं होस्टल में रहके पढे आ सभसे छोट बेटी प्रिया ईहां कानवेंट में मदन का साथे पढे। मदन से जुनियर क्लास में। मानिकलाल पत्नी से बहुत डेरास काहेकि उनकर ससुराल वाला राजनीतिक पहुचवाला बाहुबली परिवार रहे आ ई शादी जबरदस्ती दबाव में कइले रहन मानिकलाल। एह से उ पत्नी के सोझा कजरी पर जोर जबरदस्ती ना कर सकत रहन। 
एकदिन पत्नी शहरे में कही शादी में गइल रही। घर में बस उ आ कजरी रहलें तब उ मन के करे के ठान लेले। बरतन मांजत कजरी के बहाना से अपना बेडरूम में बोलाके जबरदस्ती करे लगले। कजरी सैयाद का चंगुल से निकले ला छटपटाये लागल। धर पकड भागम भाग होत रहे कि जैसे मानिकलाल कजरी के पांजा में पकडले मानिकलाल के पत्नी धमक गईली। अब त मानिकलाल के काटs त खून नदारत। कजरी भागके मलकिनी का नजदीक चलि गइली। राजनीति के पैतरा देखा देले मानिकलाल सभ दोष कजरी का माथे मढ देलि। कजरी मलकिनी के गोर धके,
"ना मलकिनी मालिक झूठ बोलत बाडे। हम त बरतन मांजत रहनी। हमरा के बहाना से बोलाके जबरदस्ती करे लगले। पहिले भी हमरा के ढेर लालच देले। हम ना मननी त आज जबरदस्ती करे लगलें। हम अपना मदन के किरीआ खा के कहत बानी हम निर्दोष बानी।" 
मदनलाल भभकलें" ना ना ई झूठ बोलत बीआ। तूं आजतक हमरा के केहू परायी मेहरारु के ओरी ताकत देखले बारू। हम अपना तीनो लडीकन कसम कहत बानी ई झूठ बोलत बीआ।" 
उहे भइल जेवन होहे के चाहीं। गरीबो कबो सांच बोलेला? मानिकलाल पर बिश्वास करके कजरी के काम छोडा घर से निकाल दिआइल। मानिकलाल के पत्नी जब ई बात रो रोके अपना नैहर कहलस त एक हप्ता का भीतरे कजरी एकरात घर से उठा लिहल गइल। सुबह उठके जब मदन माई के ना देखलस तब उ मासूम जहां जहां कजरी काम करत रहे खोजत फिरल। शहर के हर गली-मोहल्ला में मासूम मदन माई माई चिल्लात गाय से बिछुडल बछडू अइसन फेंकरत फिरल। माई त ना मिलली दु दिन बाद माई के लाश नहर में मिलल। सोची माई के लाश देख वो सात सालके मासूम पर का बीतल होई। एही उमर में माई-बाप दूनो के चिता जरावे पडल। ई जालिम दुनिया एही उमर में मदन के अनाथ बना कलम किताब का जगे हाथ में रिंच पेचकश पकडा देहलस। पढाई छूट गइल। एक साइकिल मिस्त्री का दया आइल तऽ ओकरा के अपना दुकान पर रख लेहलस। दिनभर मिस्त्री के कहल करे आ मन में माई पापा के छवि लिहले आंख में लोर भरले कइसहूं जीए भर खा लेवे। 
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समय के पक्षी पांख फडफडावत उडे लागल। मदन अब अठारह उनीस साल के नवजवान हो गइल। अपना पापा का जगेह बैठ आपन साइकिल मरम्मत के काम करे लागल। मदन बचपन में अपना माई के ऊपर पडल दुख से एतना प्रभावित रहे कि ओकरा से केहू के दुख देखल ना जाय। कोई पर कवनो तरह के जोर जबरदस्ती भा जुलुम अत्याचार ओकरा से देखल ना जाय। उ बिना अंजाम के परवाह कइले भीड जाय। कोई कहे कि काहे बेमतलब सभ मामला में टांग अडा देवेले त कहे कि हमरा माई पर भइल जुलुम आ माई के चेहरा याद पड जाला हम अपना के रोक ना पाई। लोग कऽ मुंह से माई पर भइल अत्याचार सुनले बानी। आ अखबार में पढले रही उहो हमरा कुछ कुछ याद आवेला कि हमरा माई से जबरदस्ती कइल गइल फिर ओकर हत्या। एह से केहू के दुख हमरा से देखल ना जाला। ये चलते मदन केतना बार पिटाइल आ लोग पिटलेस। जुल्मी केहू होखे केतना पावरवाला होखे उ बिरोध करे ना चुके। हप्ता में एक दुबार अइसन घटना होइये जाय। एह चलते लोग ओकरा के गुण्डा कहे लागल। 
लोग त नजर का सामने होत अत्याचार देखके भी आंख मूंद लेवे आ मदन आ बैल मार अइसन भीड जाय त उ लोग का गुण्डा लागे। बाकिर लोग का कहता एकर उ परवाह ना करे। एक दिन स्कूल से लौटे में मानिकलाल के बेटी के चार बदमाश घेर लेलें। सडक कऽ किनारे उपजल मूंज का पीछे खीच ले गइले। प्रिया रो-रो के अपना इज्जत के भीख मागे लागली,
"हम हाथ जोडत बानी। तोहरा लोगके पैर पकडत बानी। हमरा के छोड दs लोग। एक बहिन समझके दया करs लोग। कुछ कइलs लोग त हम जीअते मर जायेब।" 
चिडई के दुहाई सैयाद सुनो। एगो कहलस, 
"बहुत तरसवले तडपवले बाड़ू जानी आपन जवानी देखाके आज ना बचबु। आज हम भंवरन के मुराद पूरी" 
प्रिया लाख गिडगिडायल पर ओकनी कऽ दया ना आइल। कवनो एने से नोचे कवनो ओने से। तबे प्रिया का कान में कवनो साइकिल के घंटी के आवाज पडल। प्रिया जोर से चीख पडल। मदन शहर से साइकिल के सामान कीन के आवत रहे। कान में बचावs बचावs के लडकी के आवाज पडल। झट साइकिल में ब्रेक लागल आ मदन के सगरी इन्द्री सजग हो गइल। साइकिल सडके पर फेक उ झाडी तरफ दौड गइल। ओकरा आँख का सोझा माई के चेहरा नाच गइल। चार दरिन्दन का बीच मासूम प्रिया के रोअत देख मदन के तन-बदन में आग सुलग गइल,
"घबरा मत बहिन तोहार गुण्डा भाई आ गइल। अब एकनी के माई कहां दूध पिअवले बा कि हमरा रहते तोहार देह छू दsसs।" 
एक गोड़ा .."तें फेर आ गइले हमनी का मामला में टांग अड़ावे। एक बार के मार भुला गइले। भाग जो जान बचाके।"
"जब तक मदन के एक सांस भी बाकी रही तोहनी के मुराद पूरा ना होखे देब। हिम्मत बा त तनी छू के त देखsसs हमरा बहिन के।" 
आ फेर त चक्रब्यूह के अभिमन्यू अइसन भीड गइल मदन चारो दरिन्दन से। तबतक हल्ला गुल्ला सुनके कुछ लोग जमा होखे लागल ओजा। लेकिन मूक पत्थर बनल चुपचाप जैसे कवनो फालिम के शूटिंग देखत होखे सभ। चारो पर जब मदन भारी पडेलागल तब चाकु निकाल मदन पर टूट पडले सs। जब बुरी तरह घायल होके मदन गिर गइल तब सभ भाग गइलेस। 
लोग चाहीत त सभके पकड सकत रहे बाकिर ओकनी का हाथ में चाकु देख सभके खून पानी हो गइल रहे। प्रिया दौडके मदन का पास आके वोकर माथा गोदी में ले,
"ई का कइलs भइया। अपना दुश्मन के बेटी के लाज बचावेला जान पर खेल गईलs। तोहरा माई के बरबादी के कहानी हमरे घर से शुरू भइल रहे आ तू हमरा ला जान के बाजी लगा दिहलs।" 
मदन लहू से सनल होठ का बीच मुस्कान के फूल खिलावत, 
"एह में तोहार का दोष रहे बहिन। आ रहबो करीत त हमार बहिन हऊ तोहार लाज बचावल हमार धरम हवे राखी ना बनहले बारू त का? ये शहर के हर लडकी औरत मदन के बहिन माई हs। अपना बहिन के लाज बचावेला मदन एक जन्म त का हजार जनम न्योछार कर दी काहे कि औरत के इज्जत के मोल जानत बा।" 
"भैया तू धन्य बाडs तू धन्य बाडs ।" 
"बहिन अपना बिदा होत भाई के एकबार गुण्डा भैया कहके बोला दे। हमरा ई नाम बहुत प्यारा लागेला।" 
"ना भैया ना अइसन मत कह$ तोहरा कुछ ना होई हमार गुण्डा भैया। काश तोहरे अइसन गुण्डा सारा देश हो जाइत।" 
फेर उहां मूरती बनके खडा लोग से, "अरे गुण्डन का डरे त मदद करे ना अइलs लोग अब इनका के अस्पताल ले चले में मदद करे में भी डर लागत बा आ अपना के मरदे कहबs लोग।"
"ना बहिन ना एकर अब जरूरतो नइखे। हमार आखिरी पल आ गइल बा। दोसर ई नामर्दन के हमार लाश भी मत छुए दीहs। जेकर खून बहिन बेटी के लुटात इज्जत देख के ना खौले ओकर मदद ना चाही हमरा। ई सभ का जगे हिजडा भी रहतें सs त ताली बजाके दरिन्दन के डेरवाके भगा देत सभ। ई सभ त ओहू लायेक नइखे। ई बहादुरी देखाई सभ? हमार तोहार लाश लेके झूठो के गला फाड चिलाई आ मोमबती जलाई। सडक जाम करके लोग के परेशान करके वाह वाही लूटी, लेकिन मौका पर हुंकार भी भरे से डेराई। अच्छा बहिन बिदा करs अपना भाई के।"
कहत-कहत मदन के गर्दन लटक गइल। आ शान से सीना तान अपना माई पापा लगे चल देलस। प्रिया मदन के माथा सीना से चिपका भोंकार पारके रोये लागल। तभही शायद केहू से खबर पाके मानिकलाल दौडते पहुंचले आ इहां के नजारा देख आवाक रह गइले। बेटी का नजर में अपना ला उनका घृणे घृणा लौकत रहे। जेकर उ सभ कुछ लूट लेले आज उ इनका झोली में सभसे अनमोल हीरा डाल बिना कुछ लेले चल गइल। आंख भर आइल मानिकलाल के। का कहस केकरा से कहस आपन काली करतूत। धीरे-धीरे आगे बढ मदन का पैर के पास बैठ गइले। आँख से दो कतरा मदन का पैर पर गिरल जवना में पश्चाताप के ज्वाला रहे।। मदन के पैर के धूल माथ पर लगवले और हाथ जोड बेटी का तरफ कातर निगाह से देख बुदबुदइले,
"माफ कऽ दे बेटी अपना गुनहगार बाप के।"
आ प्रिया के आख से बहत गंगा जमुना के धारा एक गुण्डा के पांव पखारत रहे।
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मृत्युंजय अश्रुज











अंक - 69 (1 मार्च 2016)



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