जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी कऽ दूगो कबिता

कइसन निमित्त

अपना निमित्त 
हेरत 
सहूलियत 
सबही बा
सुध भुला के। 

एकला चले क विधान 
तूर रहल बा 
मरोड़ मरोड़ के 
नेह के डोरी 
सज्ञानों बा सभे। 

दरदियो सहत बा सभे 
रोज रोज 
तबों फंसल बा सभे 
अपना बनावल 
जाल में। 

स्वतन्त्रता जरूरी होला 
लेकिन अनुशासन में
अब नवका पीढ़ी 
रोजे धता बतावेले 
अनुशासन के।

फेनु दरद के सौगात 
मिलबे करी 
अपनापन भुलइबे करी 
फिर त केतनों हेरी
ना मिली। 

कह नईखे पावत 
चाहत बा कहल
उनकरे कइल 
स्वतन्त्रता के पहल 
उलटबासी बुझाता। 

हेरत रही फिर
केनियों अपनापन 
जवना के तुरे मे अगहरे रहा 
आपन लोग भा आपन माटी 
सपना हो गइल। 

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आवाहन

गहिराह विचार 
परिवर्तन खातिर
आवाहन 
होखी 
कबों न कबों। 

अइसन सोच 
गतिहीन बा 
अबहिन 
कवनों गुरुत्व मे 
शोध के विषय। 

सभ सुध बुध 
चमत्कार के जोहत 
मनई
धुंध मे हेराइल 
बौडियात दिखल। 

मनलुभावन बातिन के 
उठत ज्वार 
थमल नइखे 
थमला के असारों नइखे 
भरमल बा सभे। 

कब आखिर कब 
जागी ई लोग 
के जगाई 
कइसे जगाई 
एगो प्रश्न बा। 

आँख मिलावल 
कहे मे त नीमन बा
बाउर हो जाला 
कइला पर 
दरद के सौगात मिलेला। 

उबाल उठी अब 
समय के माँग 
इहे बा 
विश्वास दमगर 
उन्मादों बा संगे। 

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लेखक परिचय:-

नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 
मैनेजिग एडिटर (वेव) भोजपुरी पंचायत
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र: 
सी-39 ,सेक्टर – 3 
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.) 
फोन : 9999614657
अंक - 69 (1 मार्च 2016)

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