आग लागल - अक्षय कुमार पांडेय

आग लागल ;
बच सके जे कुछ बचावल जाव घर में ।

मेज पर चश्मा
कलम टोपी घड़ी बा,
आज कोना में पड़ल
सोचत छड़ी बा,
थेघ देहलीं थाह हम अपना समय के;
हो गइल बेकार बानीं एह उमर में ।

दियरखा कs बगल में
ऐना टंगल बा,
भइल अब आन्हर
इ आपन भागफल बा,
दाग चेहरा पर लहू कs उभर आइल;
तन गइल तलवार अपना अंश-हर में।


जर रहल गीता
जरत कुरआन बाटे,
जर रहल सँइचल
सकल सामान बाटे,
बन्द बा पिंजरा तनी खोलs झपट के;
मर रहल बा नेह कs सुगना लवर में।

मर्सिया फिर लोग
काहें गा रहल बा,
ई चिराइन धुआँ
काहें छा रहल बा,
डार पर बइठल कबूतर सोच में बा;
फूल ना लागल असो एह गुलमोहर में।
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अक्षय कुमार पांडेय










अंक - 69 (1 मार्च 2016)




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