फगुनहट: कुसुम रंग चुनरी रंगवा द पियवा - जनकदेव जनक

आशा के अनुराग आ उमंगन के बहार लिहले आ गइल बा मदमस्त मधुमास. वसंती गंध से तन बदन अंगराई लेत बा. वन उपवनो सुवासित हो उठल बा. अइसन में भला, गांव आउर र शहर का ? मस्ती के आलम त हर तरफ छइले बा. चारों तरफ उन्माद के आगोश में रंग- गुलाल उड़त बा. जवन फगुनहट के बेयार में अमन चैन के पैगाम दे रहल बा. एह मउका पर अनुराग के ईंगुर उमिर बंधन भूला गइल बा.जेने देखी ओने हर उमिर के लोग मस्ती में झूमत बा. अइसन लगत बा कि वक्त ठहर गइल बा. ऐह मन भावन बेला में केहू के मन भिंगे त भिंगे, तन ना भींगे, का अ्इसन हो सकता! केहू ठीके कहले बा-
भिंजी भिंजी रस भिंजल 
मौसम भिंजल पियार के
घूंटी घूंटी चांदनी पियावे 
बहकल पांव हजार के.
रंग में भंग होला. अइसे में केहू के पांव फिसलल त का फिसलल. यहां त कितनन के अरमान फिसल जाता. देखते देखते सपनन के संसार उजड़ जाता. अगर केहू पश्चताप करता बा त करो केहू रोअत बा त रोवे. मस्त मौला के ओकरा से का लेवे के बा ? ओकरा त हर हाल में रसपान करे के बा. केहू अकारन ओकरा के डिगा नइखे सकत.
कलियां गुलाबी किरण चटकावे
गीत मिलन के सुहागिन गावे
पिंजरा में बोले मन को सुगनवा
मोतिया उगाहे सीपी रे नयनवां.
गोरी के होरी बलजोरी असम कमाये गइल बा. ताकि चाय बगान में माटी काटके कुछ रुपिया पइसा आ सृंगार के सामान अपना पियारी धनिया खातिर भेज सको. जवना से ऊ अपना गोड़ में महावर, माथा पर बिंदिया, कलाई में चूड़िया आउर साड़ी के साथे अबीर गुलाल खरीद सकस. फागुन के सौगात पाके ऊ बहुते खुश होइहें, गोरी के होरी अइसने सोचत बा. बाकिर उहां त माटी काटे के धंधा बड़ा मंदा बा. काम के टाना टानी चल रहल बा. ऐन चढ़ते फालगुन गोरी फगुआ में आवे के सनेसा भेज देले बाड़ी. ओने गांव में फाग त आ गइल बा, बाकिर गोरी के होरी घर ना पहुंच पावल. रंग-गुलाल में उनुकर सखी नहाता लोग. अपना- अपना पिया से ठिठोली करे में मस्त बा. दूर से आ रहल ढोल मजीरा के आवाज गोरी के कान में गरम सीसा नियर पड़त बा. ढोलकी के थाप पर ऊ आपन करेजा थाम लेत बाड़ी. उनुकर आकुल मन आउरर बेयाकुल हो उठता बा. मन में एगो टीस उठता. बैरन कोयल के कूक से दिल के हुक आउर बढ़ जाता.
झनकत झाल मजीरा, ढमकत ढोल मृदंग
हम बटोर के विपत अगिन लहकी ओकरे संग,
कहीं अबीर गुलाल रंग, कहीं सती शिव संग
होरी दूर असाम में धनिया घर में तंग.
फागुन के रंग देख के निरगुन मन सगुन हो उठेल बा. ऊ सोमरस में सराबोर होके महुआ के फल नियर टप टप चुये् लगत बा. तब बरसन से सिसकता सपना एकाएक मुस्करा उठत बा. केहू के नजर केहू खातिर नजरा बन जाला त केहूं के दर्द केहूं खतिर सहारा बन जाला. फागुन त तन आ मन के जोड़े वाला लड़ी ह. दिल में बढ़ते पियार के दरिया में आउर प्रेम के रंग उड़ेले के कड़ी ह. कबहू कबहू त सूखल कंठ के मधुरस से भिंगोये खातिर जमाना गुजर जाला. केहू सोमरस पावे के ललसा में कई सालन तक पियासा रह जाला. बाकिर इंतजार के घड़ी कबहूं खतम ना होला. तब एह बेईमान मौसम में मन ई गीत गुन गुनाये लागेला....
गांव -नगर हर प्राण प्राण में
मदन जगावे घूम के
पात पात पर चित्र उरेहे
रितु अलबेला झूम के .
फागुन त पुरूष के पौरूष आउरर नारी के नारीत्व पर इतराला. ओकरा यौवन पर इठलाला. हर्षित होला दुनू के मधुर मिलन पर. जहां आलिंगन में पियार के उल्लास आ उमंग होला. उहां मन के डोर प्रीत के संगे होला. अइसे में गोरी के चुनरिया त कुसुम रंग में लहरइबे करी. तब ऊ काहे ने गाई‘ कुसुम रंग चुनरी रंगवा दे पियवा हो ...’
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लेखक परिचय:-

पता: सब्जी बगान लिलोरी पथरा झरिया,
पो. झरिया, जिला-धनबाद 
झारखंड (भारत) पिन 828111,
मो. 09431730244

अंक - 70 (8 मार्च 2016)

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