दियरखा पर ढिबरी जेवन जरेला
अउरी करिया-करिया लप-लप लहरेला
छितरा जाला तन-मन में ऊ।
काजर बनि के आँखि रिगावे
करिखा बनि के मुँह बिरावे
छितरा जाला तन-मन में ऊ।
कि सगरी जिनगी आगि लगवनी
आँखि के जोरि के चूल्हा जरवनी
छितरा जाला तन-मन में ऊ।
अब बिरावे देंहि हमके तऽ का
हाथ उठा के रोवे-गावे तऽ का
छितरा जाला तन-मन में ऊ।
देखऽ दियरखा ऊहें परल बा
ढिबरी जाने कब से जरल बा
छितरा जाला तन-मन में ऊ।
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लेखक परिचय:-
नाम: राजीव उपाध्याय
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 7503628659
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
अंक - 69 (1 मार्च 2016)
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