सांस के कफन - मृत्युंजय अश्रुज


हमनी के समाज में केतने अइसन रेवाज परम्परा बना दिआइल बा कि जेवन सरग-नरक-मोक्ष-आत्मा के डर देखा के जेकरा के अदिमी ढोवत बा। इ ढोअल जेकरा सामर्थ बा ओकरा त कवनो कष्ट ना बा लेकिन जे बेबस आ लाचार बा उ समाज आ सरग-नरक-मोक्ष-आत्मा कऽ भय से जबरन मानत बा आ आपन बाकी कऽ जिनगी के अपनी सांस के कफन ओढ काटत बा। अपना ए कहानी में एही बात कहे के कोसिस कइले बानी।

- मृत्युंजय अश्रुज
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जवानी से अबतक निर्दयी समय के थप्पड सहत-सहत रामदीन आज पैंतालीस का उमर में ही पैंसठ के बुझाता। माटी के गोबरा से लीपल दिवार से पीठ टिकवले रामदीन शून्य में आंख गडवले बा। आज ओकरा ओ बाप के मरला पांच दिन हो गइल बा जे कहिओ ओकरा मन के भाव बिचार के ना बुझलेस। अपना बिआह के समय के एक एक बात बाईस्कोप के पर्दा अइसन मन पर रहल बा। रामदीन के बाप झपसी रामदीन के बिआह अपना दोस्त बिलास के बेटी से करावे चाहत रहन। काहे कि बिलास का बेटी छोड कवनो दोसर औलाद ना रहे। बिलास का लगे कुछ नगदी जेवर का अलावे दस बिगहा खेत रहे जवन सब रामदीन के हो जाइत। एने रामदीन एगो गरीब के सुन्दर बेटी सुगनिया से प्यार करत रहन। उ धन का लालच में अपना प्रेम के धोखा ना देवे चाहत रहन। बाकिर बाप धमकिया के समझवले ...

"तोरा के कूकूर कटले बा। अरे जिनगी भर हाथ-गोड़ तुरि के कमइबे तबो एक बिगहा जमीन कीन पइबे कि ना शके बा आ बैठले दस बिगहा मिलत बा त मजनू बने के नीसा भइल बा। अरे ते ना करबे सुगनिया से बिआह त ऊ कुंआरे रह जाई का? बिआह त ओकर कहीं ना कहीं होइये जाई। आ सुन ई मौका हाथ से जाये देले त हमार तोर बाप-बेटा के रिस्ता खतम। ना हम तोरा से रिस्ता राखब ना ते हमरा से।जनले।" 

रामदीन भी अपना प्रेम के दोहाई देके बाप के बहुत समझवले लेकिन उ टस से मस ना भइले ...

"तू कइसन बाप हवs कि धन का लालच में बेटा के धोखा देवे के गलत राह सिखावत बाडs। हम सुगनिया का साथे जीये-मरे के कसम खइले बानी। हम परेम में धोखा ना देब। तू नइख समझत कि हमनी के पियार कइसन बा?”

“हमनी के एक-दूसरा से अलगा हो के जिंदा ना रह सकीं जा। आ पइसा ला हम अपना सुगनी के जान ना लेब। हम तोहरा के नइखी छोडत। अपने भूखे रह जायेब जा हमनी तोहरा के भूखे ना राखब जा। रिसियाइल छोड दs आ हमन के परेम के कदर करs।" 

लेकिन बूढा जिद्द ना छोडलें। आ रामदीन आ सुगनी के शादी का बाद बेटा से कवनो नाता ना रखलें। कुछ दिन से देह गिर गइला पर रामदीन एक सही बेटा के धरम निभावत करजा काढके बाप में लगवले लेकिन बचा ना पवलें।

रामदीन के माली हालत ठीक नइखे। दिहारी मजूर के इहाँ कहां से धन? रोज कमाये खाये के बा। अब गांव समाज धरम के ठेकेदार पंडित लोग कहत बा कि जिनगी भर त बाप के कुछ ना कइलs अब उनका नाम पर धूमधाम से श्राद्ध दान पुन कऽ के बेटा के धरम निभावs।

बाकिर रामदीन लगे कुछ बा ना। रहीत त जरूर कऽ देतें लेकिन करजा लेके ऊ काम कइल, जवना से मरनिहार के कुछ लेना-देना नइखे, नइखन चाहत रामदीन लेकिन समाज के ठेकेदार लोग चहेट रहल बा।

एकदिन पंडितजी रामदीन के बिरादरी के कुछ बुजुर्ग लोग के लेके पहुंच गइलन। चारा फेंकिये के शुरु भइल कि दूर भागत बरारी कइसहूं हाथे लाग जाव ...

"देखs रामदीन चाहे जेकरा गलती से होखे अभी ई चर्चा के समय ना बा लेकिन तोहार जन्मदाता बाप तोहरा से जिनगी भर रूसल रहलें। तूं लाख चहलs लेकिन तोहार सेवा स्वीकार ना कइलें। अब अंतिम समय बा तोहरा हाथ में। उनका श्राद्ध में भरपूर दान कऽ के समाज के खीआ-पीआ के उनकरी आत्मा के शान्ती आ आपन पितृकर्ज चुकावे के मौका हाथ से जाये मत दs। अब फेर जिनगी में कबो अइसन मौका हाथे ना लागे वाला बा। हमनी जानत बानी तोहरा लगे पैसा-कौडी नईखे लेकिन एही मौका ला हित-साथी-महाजन होला। नेक काम करे ला कर्जा लेवे में संकोच ना कइल जाला बबुआ।"

रामदीन बहुत देर ले सोचलें आ अंत में आपन फैसला सुना देलें...

“बाबा आ हमार अउर काका भाई लोग हमनी के मजबूर बानी जा। अगर हमरा पास पैसा रहीत जइसे कहत बानी लोग सब कऽ देतीं। लेकिन हमरा पास कुछ सामर्थ ना बा त हम करजा लेके बडका ना बनब कि बडा ने खर्च कइलस। आज वाह वाही कराली आ काले करजा का बोझा तरे दबाइल कोंहर-कोंहर के जान दी आ अपने सांस के कफन जइसन ढोई। ई हमरा से ना होई। आ ई जानला के बादो कि ई दान दक्षिणा आ चाहे लोग के खइला पीअला आ खरचा से हमरा बाप का आत्मा के कवनो लेना-देना ना बा अउरी उनका कुछुओ ना भेंटाई, तबो हम खरचा कर देती जो रहीत तऽ बाकिर करजा लेके हम कुछ ना करब। ओह दिन जे गरीब भूखा आ जाई ओकरा के खिआ देब।"

“बापू का बेमारी में करजा लेके इलाज करावे में ना नू भगनी चाहे डेरइनी। अब हमरा के माफी दी लोग।"

सब लोग फूंफकारत चल गइल। भाई बिरादर रामदीन के जात से समाज से छांट देवे के धमकी देके गइल। सगुनिया डेरा गइल। घबराके रामदीन से कहे लागल…

"काहे अइसन जिद्द कइले बाडs। सब लोग करजा गुलाम लेके श्राद्ध करेला कि ना? जिद्द छोड दs ना तऽ छांट दी लोग त कइसे जीअल जाई? के हमनी के बेटा बेटी के बिआह करी?"

“अरे पगली जब बाप छोडे के धमकवले आ छोडीओ दिहलें त उनकरा धमकी से डेरा हम गलती करबे ना कैनी। तोरा के ना छोडनी त आज ये लोग से डेरा के गलती करीं। देख सुगनी हमनी के समाज के डरे लोग नजायज खरच कऽ के कर्जा में डूब जिनगी तबाह क। लेला। हम ओइसन पागल नईखीं कि ए लोग का फेर में मुसीबत कपारे लेलीं। आ ई डर मन से निकाल दे कि बेटा-बेटी के बिआह ना होई। देखीहे कुछ दिन में सब भुला जाई लोग। आ मतलब परी तऽ सटे लागी लोग। आदमी से बढके लालची स्वार्थी कवनो जीव ना होखेला।"

आ रामदीन जवन कहले तवन कऽ के श्राद्ध सधवले। कुछ दिन त सभे रामदीन के परछाईओं से दूर रहल फेर धीरे-धीरे एकाध लोग आवे जाए लागल। एही घरी पँचाइत कऽ चुनाव आ गइल। आ रामदीन के घर कऽ चार गो वोट सगरी गाँवे बदल दिहलस। सभ बड़ाई करे लागल तऽ केतने भोज रामदीन के नांवे हो गइल।
----------------------मृत्युंजय अश्रुज
अंक – 48 (6 अक्टूबर 2015)

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