अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि॥12॥
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय॥13॥
ढेले ऊपर चील जो बोले, गली-गली में पानी डोले।14।
जो बदरी बादरमॉं खमसे, कहे भड्डरी पानी बरसे।15।
पुरवा में पछियॉंव बहै, हॅंस के नारि पुरुष से कहै।
ऊ बरसे ई करे भतार, घाघ कहें यह सगुन विचार॥16॥
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए॥17॥
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि॥12॥
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय॥13॥
ढेले ऊपर चील जो बोले, गली-गली में पानी डोले।14।
जो बदरी बादरमॉं खमसे, कहे भड्डरी पानी बरसे।15।
पुरवा में पछियॉंव बहै, हॅंस के नारि पुरुष से कहै।
ऊ बरसे ई करे भतार, घाघ कहें यह सगुन विचार॥16॥
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए॥17॥
--------------घाघ
अंक - 48 (6 अक्टूबर 2015)
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