नाथ निरंजन आरती साजै।
गुरु के सबदूं झालरि बाजे।।
अनहद नाद गगन में गाजै,
परम जोति तहाँ आप विराजै।
दीपक जोति अषडत बाती,
परम जोति जगै दिन राती।
सकल भवन उजियारा होई,
देव निरंजन और न कोई।
अनत कला जाकै पार न पावै,
संष मृदंग धुनि बैनि बजावै।
स्वाति बूँद लै कलस बन्दाऊँ,
निरति सुरति लै पहुप चढाऊँ।
निज तत नांव अमूरति मूरति,
सब देवां सिरि उद्बुदी सूरति।
आदिनाथ नाती मछ्न्द्र ना पूता,
आरती करै गोरष ओधूता।
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लेखक परिचय:-
नाम: संत गोरखनाथ
१०वी से ११वी शताब्दी क नाथ योगी
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