मन अनुरागल हो सखिया

मन अनुरागल हो सखिया।।
नाहीं संगत और सौ ठक-ठक, अलख कौन बिधि लखिया
जन्म मरन अति कष्ट करम कहैं, बहुत कहाँ लगि झँखिया।।

बिनु हरि भजन को भेष लियो कहँ, दिये तिलक सिर तखिया
आतमराम सरूप जाने बिन, होहु दूध के मखिया।।

सतगुरु सब्दहिं साँचि गहो तजि झूँठ कपट मुख भखिया
बिन मिलले सुनले देखले बिन हिया करत सुर्तिं अँखिया।।

कृपा कटाच्छ करो जेहि छिन भरि कोर तनिक इक अँखिया
धन धन सो दिन पहर घरी पल जब नाम सुधा रस चखिया।।

काल कराल जंजाल डरहिंग अबिनासी की धकिया
जन भीखा पिया आपु भइल उड़ि-उड़ि गैली भरम की रखिया।।
-----------भीखा साहब

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.