कब फूटी इहे मनावत बा।
उल्टा छूरी कइलस हलाल
अब बड़ा मीठ बतियावत बा।
कहो नेतवा कविआइल का
पनिये में आगि लगावत बा।
बिल्ली अस पोसलीं हम ओकरा
ऊ दिल्ली अस दुरियावत बा।
ई केथरी अइसन देहीं के
सब अचरा अस सरियावत बा।
पुरखन के कहल कहावत ह
चिल्हिये जब मॉस रखवात बा।
मौका कौनो हो उहे राग
सँझिये परभाती गावत बा।
गल्ली में हंसी हंसी बतिअवलस
अब सड़की पर धमकावत बा।
आवतबा अब निम्मन दिनवा
अब निम्मन दिनवा आवत बा।
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लेखक परिचय:-
नाम: देवेन्द्र आर्य
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