पिछिला हप्ता सत्यनारायण मिश्र 'सत्तन' जी 62 बरिस के उमिर में गोरखपुर में आपन देहिं छोड़ि दिहनी। एगो बहुत बढ़िया कबी रहनी हँ उहाँ के। उहाँ कऽ कुछ पुरान गीत अउरी आखिरी रचना रउआँ सभ खाती।
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मन भीजि जाला
मड़इया में मोर मन भीजि जाला।सुखवा क ताना अ दुखवा क बाना
हेरि-हेरि हारीं हेराइल बहाना
संझा बिहान ओरहन भीजि जाला।
हियरा जो तड़पे त बदरा रसाए
बदरा रसाए त कजरा धोवाए
कतनो बचाईं दरपन भीजि जाला।
बुन्न-बुन्न सिरजीं भरै नाहिं गगरी
पयराइल पउरख पिरिथवी सगरी
पल-पल पिराला परन भीजि जाला।
नान्ह-नान्ह सपनां संवारैले नेहियां
निरखि निरासा उघारै ले देहियां
नहकै निबहुरा नयन भीजि जाला।
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जा बरखा
सूतल सपना, सोच सिर्हानेजा बरखा अब खेत सुखाने।
पल-पल पीटत, पर, पलुवार,
बीपत, बिटियन क बढ़वार
गर-गर गरत पसीना पीठि
सर-सर सरकत चढ़त कपार
लागल, थसमस होस, ठेकाने।
मुंह फेरि अंहुई अंहुआय
आंखिन आई असाढ़ समाय
चूल्हि चुहानी करै उपसा
खाइल-पीयल परे पराय
बिरथा, बिनती थान्ह-पवाने।
बाउर बखत बड़ा बरियार
जग अनगैया, कहां चिन्हार
हितई गईल, नतैती लोप
बनले पर त, बहुत इयार
के तर दिन बहुरत, का जाने।-----------------
चलि आ घरे
रितुजाई सवनवां क बीतमीत अब चलि आ घरे
परिजाई सपनवां प सीत
मीत अब चलि आ घरे।
लागे लहुक प अकासे क पहरा
लुतुरा बदरवा क लगहर लहरा
भेहिलाई पिरितिया क भीत
मीत अब चलि आ घरे।
लागे लहुक प अकासे क पहरा
लुतुरा बदरवा क लगहर लहरा
भेहिलाई पिरितया क भीत
मीत अब चलि आ घरे।
अंहकै अन्हार भरि, भादौ क रात
बहकै बयार धरि, केरा क पात
सुधि सुगुना अ पिंजरा सकीत
मीत अब चलि आ घरे।
आगी-लगै अस करे कमाई
पहर पहार दिन पारे न जाई
पतियो पर न पै परतीत
मीत अब चलि आ घरे।
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हमरो तोहके ईद मुबारक
हमरो तोहके ईद मुबारकओनतिस दिन के कइन तपस्या
तन तापन ताकीद मोबारक।
अधिए राति जगावत सेहरी
बीतल पगत पगावत सेहरी
अफतारी पर जेवना जुबरी
असकत झोरि भगावत सेहरी
दिन थकहरल राति ना पवलस
निखरहरे के नींद मोबारक.
बीतल पगत पगावत सेहरी
अफतारी पर जेवना जुबरी
असकत झोरि भगावत सेहरी
दिन थकहरल राति ना पवलस
निखरहरे के नींद मोबारक.
------------सत्यनारायण मिश्र ‘सत्तन'
चित्र साभार: भोजपुरिका
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