"इमेभोजा अंगिरसो विरुपा दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीराः।
विश्वामित्राय ददतो मघानि सहsसावे प्रतिस्तः आयुः॥"
इहे उ संस्कृत के श्लोक ह जहवां से भोजपुरी के उत्पत्ति मानल जाला, डा.ए.बनर्जी के अनुसार ऋगवेद के उपरोक्त ऋचा के अनुसार ऋषि विश्वामित्र जे लोग के साथ यज्ञ करत रहनी उहे लोग "इमेभोजा" कहात रहे,एही आधार पर उंहा केकहेनी जे इमेभोजा जवना क्षेत्र में ऋषि विश्वामित्र के साथे निवास करत रहे लोग, उहे भोजपुरी के क्षेत्र ह।
भोजपुरी शब्द के भाषा के रुप में सर्वप्रथम उल्लेख पटना के 'Gazetteer Revision Scheme' के विशेष अफसर पी.सी.रायचौधरी के अनुसार "भोजपुरिया" नाम से सन् १७८९ ई. में भइल रहे। एकर नामकरण बिहार में बक्सर के लगे भोजपुर नाव के जगहि से भइल बा,जवन पटना से सौ किलोमीटर के दूरी पर बा।
राहुल सांकृत्यायन जी कहेनी जे 'सरस्वती कण्ठाभरण धारेश्वर महाराज भोज' के वंश के 'महाराज शांतनशाह' १४वीं सदीमें अपना राजधानी के मुसलमान शासकन के अधिकार में चलि गइला के कारन जहां तहां होत बिहार के क्षेत्र में पहुंचले। एहिजु पहुंच के शान्तनशाह पहिले दांवा ( बिहियां इ.आई.आर.स्टेशन के लगे एगो छोट गांव) के आपन राजधानी बनवलें। उनुके वंशज जगदीशपुर मठिला आ अन्त में डुमरांव में आपन राजधानी स्थापित क लिहल लोग। बाद में गढ़ भोजपुरहो गइल, पुरान भोजपुर त गंगा में बह गइल बाकि नाया भोजपुर डुमरांव स्टेशन से दू मील के दूरी प बा। राहुल जी
शान्तनशाह के दादा द्वितीय भोज आ भारत के प्रतापी राजा "महाराज भोज प्रथम" के नाम पर एह क्षेत्र के नामकरण "भोजपुर" कइले के संभावना जतवले बानी।
ग्रियर्सन अपना सर्वेक्षण ग्रंथ Linguistic Survey of India में मालवा नरेश भोजदेव के नाम पर भोजपुर के
नामकरण स्वीकार करेनी। एह सन्दर्भ में डा.उदय नारायण तिवारी,पृथ्वीसिंह मेहता, दुर्गाप्रसाद सिंह आ औरी तमामन इतिहासविद् लोग के आपन अलगे अलगे मत बा।
भाषाई परिवार के स्तर पर भोजपुरी एगो आर्य भाषा हियs, पच्छिम बिहार, पूर्वी उत्तर परदेस औरी उत्तरी झारखण्ड एके बोले वाला प्रमुख क्षेत्रन में बा। ब्रिटिश राज के दौरान एही कुल्हि क्षेत्र से अंग्रेज ,मजदूरन के रुप में एहिजु के लोग के विश्व के कई गो महादीप प ले गइले स, ओ लोग के वंशज अब ओहिजु बस गइल बाड़ें। एमें सूरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो अवुरी फिजी प्रमुख बा।
भोजपुरी भाषा के इतिहास के प्रारम्भ सातवीं सदी से मानल जाला ,लगभग एक हजार साल पुरान। एह भाषा के तीन गोप्रधान बोली बा -
१. आदर्श भोजपुरी
२. पच्छिमी भोजपुरी अवुरी
३. मधेसी आ थारु उपबोली के रुप में परसिध बा।
"आदर्श भोजपुरी" बिहार के आरा जिला आ उत्तर परदेस के बलिया, गाजीपुर जिला के पूर्वी भाग आ सरजू और गंडक के दोआब में बोलल जाला। पूर्वी गोरखपुर के भाषा 'गोरखपुरी' आ पच्छिमी गोरखपुरी अवुरी बस्ती जिला के भाषा के 'सरवरिया' कहल जाला।
"पच्छिमी भोजपुरी " जौनपुर, आजमगढ़, बनारस, गाज़ीपुर के पच्छिम भाग आ मिर्जापुर में बोलेला लोग।
"मधेसी" तिरहुत के मैथिल आ गोरखपुर के भोजपुरी के बीचे में के बोली ह ,इ मुख्यतः चंपारण में बोलाला।
"थारू" जनजाति के लोग नेपाल के तराई आ बहराइच से चम्पारन ले पावल जालें । गोंडा आ बहराइच में भी लोग भोजपुरिए बोलेला ..इहे थारू बोली कहाला।
भोजपुरी के वर्तमान स्थिति के बारे में जो बात कइल जाओ त एह समे ओकर दासा व्यथित बा, जवन भाषा कब्बो गुरु गोरखनाथ ,संत कबीर जइसन मकान संत लो के भाषा रहे उ आजु दू कउड़ी के छिटपुटिया लोग के फईलावल फुहरई केसिकार हो गइल बिया ,जवन मान प्रतिष्ठा महेंदर मिसिर आ भिखारी ठाकुर के जबाना में रहल उ अब कहीं गाएब हो
गइल बा। अश्लीलता जवना हिसाब से भोजपुरी के अपना आगोश में घेरले बा उ बहुत बड़हन चिन्ता के बात बा। भोजपुरीलोकसाहित्य आ संगीत पहिले जेतना सम्मानित आ समॄद्ध रहे ( बेशक उ अजुवो बा बाकि अश्लीलता ओहपर कहीं ना कहीं हावी हो गइल बा ) इतना सम्मान के दृष्टि से अब ओके नइखे देखल जात । एकर जवन सबसे बड़हन कारन लउकता उ एकमात्र भोजपुरी संगीत आ सिनेमा में फइलल फुहरई बा। लोग अब भुलात जाता जे भोजपुरी उहे भाखा ह जवन कबीर बाबा के सद्गति के आवाज बनल रहे, इ उहे भाखा ह जवन महेंदर मिसिर के गीतन में सिंगार आ स्त्रीरुप के सुन्नर वर्णन कइलस, भिखारी बाबा के रचना में समाज के कमजोर पक्ष के विरोध में अवाज उपर उठावे के कोसिस कइलेरहे , उहे भाखा आज दू दिन के निकलल कलाकारन (?) के कुकर्म से दबाइल जा तिया।
भोजपुरी के सरस, सुन्दर आ मधुर भाखा के रुप में जानल जाला, लेकिन जवना तरे फुहरई के परभाव एहमें बढ़ता , इसगरो भोजपुरिया समाज खाति चिंता आ शरम के बात बा। आजु भोजपुरी गीतन आ फिलिम में जवने तरे द्विअर्थी
संवाद के प्रमुखता दिहल जाला उ भोजपुरी के उपर खतरा के सोझा संकेत बा, आजु ए बात में कवनो दू राय नइखे जे भोजपुरी में रचनात्मकता के आभाव भइल बा जे भाखा के साथे साथे अपना संस्कृति के भी परभावित करsता। आजु भोजपुरी समृद्ध त बा बाकि ओकर गुणवत्ता कहीं ना कहीं बिलाइल बा। भोजपुरी आज भाषागत आ दृश्यगत दुनु रुप से अश्लील आ दूषित हो गइल बिया जेकर जिम्मेदार तथाकथित गायक, कलाकार, निर्देशक आ कुछ हद तक दर्शक भी बाड़ें। इहेछिटपुटिया कलाकार लोग कहेलें की इ अब जनता के डिमांड बा बाकि इ सगरो फुहरई फइलावल ए लोग के क्विक हिट फार्मूला बा, जाहिर बा किबयुवा वर्ग एसे ढेर प्रभावित होता, बाकि लोग के इ ना भुलाएके चाहीं कि अजुवो एगो वर्ग 'मोहम्मद खलील', 'भरत शर्मा' के गीतन के दीवाना बा, 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो', 'गंगा किनारे मोरा गांव' एह तरे के सिनेमा के दम पर गर्व महसूस करेला ,भिखारी ठाकुर आ महेंदर मिसिर के गीतन के अबो गावल सुनल पसन्द करेला। आपन महत्व खतम होत भोजपुरी के अस्तित्व पर खतरा त बड़ले बा साथे साथे एसे भारत के समृद्ध संस्कृति पर भी बुरा असर पड़ता। आजु जहां वियतनाम, मारीशस, सूरीनाम, नेपाल जइसन कई गो देस में भोजपुरी के प्रमुख भाषा के तौर पर जानल जाला, एकतरफ ए बात से हमनी के गर्व होला ओहिजु अपना देस में ए सुन्नर भाखा में फइलल अश्लीलता के वजह से हमनी के शर्मिंदा होखेके परेला।
भोजपुरी के फुहरई से बचावल बड़ा जरुरी बा ना त एतना मीठ आ सुगढ़ बोली के लोप भइला से केहू रोक ना पाई।
भोजपुरी के सशक्तीकरण खाति ओके संवैधानिक मान्यता दियावल बहुत जरूरी बा, भोजपुरी के बोले वाला लोग के संख्याभारत में ढेर बा बाकि तबो उ संविधान के आठवा अनुसूची में सामिल नइखे ,हालांकि एह मुद्दा पर ढेर लोग आपन आवाज उठवले बा आ अबो इ काम होता बाकि हेतना बड़हन क्षेत्र में बोले जाए वाला भाषा के ओर सरकार के कवनो धेयान नइखे जात। वर्तमान सरकार लोकसभा चुनाव के परचार के दौरान आपन कइल गइल वादा से मुकर गइल बिया। एही
सरकार के एक जाना मन्त्री इ बात कहले रहले जे अगर केन्द्र में हमनी के सरकार बनल त भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता मिल जाई, बाकि अबहीं कुछेक दिन पुरान खबर के अनुसार भोजपुरी सहित कुछ और भी क्षेत्रीय भाषा के मान्यता दिहला से इन्कार क दिहल गइल बा। आखिर भोजपुरी से वादाखिलाफी आ अनदेखी कहिया ले रही।
भाषाई सशक्तीकरण आ भोजपुरी के विकास, उत्थान खाति सरकारी मान्यता एकदम आवश्यक बा। ए कदम से भोजपुरी के बहुत फायदा होखी जइसे-
१. सरकार के वार्षिक बजट आ पंचवर्षीय योजना से विकास खाति धन के विनियुक्ति।
२. भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३४४ के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा भाषा के विकास खाति विशेष आयोग के गठन आ नियुक्ति।
३. देश के अवुरी भाषा के तुलना में विशेषाधिकार ।
४. भोजपुरी के अध्ययन अनुसंधान आ विकास खाति सरकार के ओर से समुचित आर्थिक सहजोग।
५. भोजपुरी भाषा के भाषिक ,साहित्यिक आ सांस्कृतिक सृजन के राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान।
६. प्रेस, प्रकाशन, फिल्म उद्योग, रेडियो, दूरदर्शन के प्रसारण में विसेस महत्व।
भोजपुरी अपने आप में बड़ा सुन्नर आ समृद्ध भाषा ह आ इ भारत के अन्य कवनो भाषा कुल्हि से इचिको कम नइखे ,एदृष्टि से ए भाषा के महत्व बहुत अधिक बा आ एकर भविस् और भी उज्जवल आ गौरवशाली हो सकेला बाकि जबले अश्लीलता हे तरे फइलल रही तबले कुछु नइखे कहल जा सकत। भोजपुरी भाषा में निबद्ध साहित्य हालांकि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नइखे बाकि जवन भी बा उ अपने आप में काफी उत्कृष्ट बा आ अब अनेक साहित्यकार, भाषाविद् आ अधिकारी लोग एके संकलन में जुटल बा। भोजपुरी में अब अनेको अनेक पत्र-पत्रिका आ साहित्य के संपादन सुरु हो गइल बा, आ एह तरे से भोजपुरी के विकास खाति ढेर संस्था, संगठन समे समे पर आंदोलनात्मक, बौद्धिक आ रचनात्मक स्तर पर एह संस्कृति के विकास में जुटल बाड़ी स। भोजपुरी के सुन्नर आ उज्जवल भविष् खाति सबसे बड़हन जिम्मेवारी भोजपुरिया लोग के ही बा।
भोजपुरी हमनी के माई हियs आ अपना माई के त्यागल एगो अक्षम्य पाप होखी। पहिले इ रहे कि भोजपुरी क्षेत्र के लोग निपढ़ रहे, ओसे एकरा बिकास में तमाम तरे को रोड़ा अटकत रहे बाकि अब का देखल जाता कि.. इ लोग पढ़ लिख के बढ़िया नोकरी पा के आपन एरिया छोड़ के देस बिदेस में कमाए चल जाता लोग, आ साथे साथे अपना मेहरी लइका के भी ले जाता ..ओहिजु जाके उ लोग अपना अगिला पीढ़ी के प्रगतिशील आ आधुनिक बनावें खातिर भोजपुरी बोलल छोड़ के हिन्दी अंग्रेजी में बतियाव सुरु क देता... इ फैक्टर भोजपुरी के भविस खाति एगो बहुत बड़हन खतरा होत जाता। लोग के इ सोचेके चाहीं की इ आपन माईभाखा ह ,एके छोड़ल अपने समाज आ संस्कृति के सोर के अब्बर क दी। कवनो मराठी, बंगाली, गुजराती, मद्रासी, पंजाबी आ चाहे कवनो भी भाषा समूह के लोग चाहे केतनो बड़हन पद पर बा, जब उ अपना समाजी आ अपना भाखा समूह के लोग से कहीं बाहर भेंटाला त अपने माईभाखा में ही बात करेला....बाकि इबात भोजपुरिया लोग में नइखे। एकर कारन त भोजपुरी में फइलल अश्लीलता ही बा बाकी हमनी के एगो बात प बिचार करेके चाहीं। हमनी के घर में रोज सांझे बिहाने नियम से झाड़ू लगावेनी जा...घर में गंदगी, धूरा धाकड़,कबाड़ रोज आवेला,ओके रोकला के मान नइखे ओहिसे घर के साफ सफाई हमनी के दिनचर्या में सामिल बा....झाड़ू लगइला के बाद घर एकदम निमन चिक्कन, साफ हो जाला ठीक ओहि तरे इ फुहरई हमनी के भोजपुरी के घर में घुसल बा..अभीन त एके बहारे वाला लोग कम बा ,लोग घिना के घर छोड़के भागता, एही से इ घर कबाड़ से भरल बा, गंदगी ढेर बा....ओलोग के सोचेके चाहीं की आपन घर हरमेसा आपन होला....ओहिसे ए घर के हर सदस्य के सांझे बिहाने झाड़ू लगावेकेपरी, झारेक पोंछेक परी। इ गंदगी कबो खतम ना होई एहिसे हमनी के इ काम रोज करेके परी..दांजां हिसी कइला से काम ना चली। फुहरई फैलावे वाला रोज भोजपुरी के गंदा करे के कोसिस करिहें स बाकि हमनी के ओकर बिरोध कके भोजपुरी के निमन चिक्कन बनावेके बा।
त आईं जा एगो सभ्य, श्लील, सुंदर आ चमकती भोजपुरी के समाज के निर्माण में आपन सहजोग देवेके, गुरु गोरक्षनाथ, कबीरदास, भिखारी ठाकुर, वीर कुंवर सिंह, मंगल पाण्डेय जइसन पुरोधा लोग के भाखा के जियत रखे खाति एगो सामूहिक कदम उठावेके...! आश्लीलता के बिरोध करीं आ भोजपुरी के ओकर भुलाइल सम्मान वापस दियाईं।
-------------आदित्य दूबे
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