मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।। टेक।।
आसन मारि मंदिर में बैठे,
नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।। 1।।
कनवां फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले,
दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा।। 2।।
जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले,
काम जराय जोगी होइ गैलै हिजरा।। 3।।
मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ा रंगौले,
गीता बाँचि के होइ गैले लबरा।। 4।।
कहहि कबीर सुनो भाई साधो,
जम दरबजवाँ बाँधल जैवे पकरा।। 5।।
----------------कबीरदास
अंक - 22 (7 अप्रैल 2015)
आसन मारि मंदिर में बैठे,
नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।। 1।।
कनवां फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले,
दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा।। 2।।
जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले,
काम जराय जोगी होइ गैलै हिजरा।। 3।।
मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ा रंगौले,
गीता बाँचि के होइ गैले लबरा।। 4।।
कहहि कबीर सुनो भाई साधो,
जम दरबजवाँ बाँधल जैवे पकरा।। 5।।
----------------कबीरदास
अंक - 22 (7 अप्रैल 2015)
Its great, I was not aware that Kabir had written in Bhojpuri
जवाब देंहटाएंThanks for sharing
रऊआँ 21 अप्रैल के चेक करब उहाँ के कबिता तहिओ छपी।
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