पागल प्रेमी - डॉ० उमेशजी ओझा

ई कहानी सत्य घटना प आधारित बा. कहानी के पात्र एक दूसरा से खुबे पेयर करत बाडन . समाज में जाति के भेद भाव के चलते जब ओकर चाहत पूरा होत नईखे बुझात त ऊ आपन पेयर में पागल होके लईकी आपन प्रेमी के घरे गाजा बाजा के साथे बारात लेके पहुच जात बिया. कहानी के सत्यता के देखत एकर पात्र आ स्थान के नाम बदल दिहल गईल बा.
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प्रेम के चेहरा गोल रंग एकदम दुधिया, बाल करिया बादर निहन. उनका के देखि के अईसन बुझात रहे कि सरग से कवनो ईनार के परी जमीन प उतर आईल बिया.  प्रेम के बाबूजी एगो नामी कम्पनी में मैनेजेर के पद पर काम करत रहले. उनका दुगो लईका आ एगो लईकी प्रेम रहली. दुनो लईका बड़ी तेज आ होनहार रहले. बाकी प्रेम माई बाप के दुलार पा के जिद्दी हो गईल रही. कवनो चीज खातिर ठान लेत रही त ओकरा के पूरा करवा के ही दम लेत रही. एकदम नाक चढ़ी बात-बात प खिसिया के ऊ अपना के तकलीफ दिहल शुरू कर देत रही. जईसे आपन मुड़ी के दिवार से पटकल, तेजधार हथियार से अपने आप के काटिके चोटिल कर लिहल त उनकर आम बात रहे. जईसही केहू उनकर बात-में-बात मिलाके उनकर चाहत पूरा कर देत रहे ऊ शांत हो जात रही. एह चलते उनकर घरवाला उनका से केहू कुछुओ ना बोलत रहे.  
              जब प्रेम १०वी में पढ़त रहली तबेसे उनके ईसकुल में पढेवाले संजय से उनकर ईयारी हो गईल रहे. ईसकुल के बाद दुनो एके कॉलेज में नाम लिखवावले लोग.
              संजय प्रेम के एक दम उलटा शांत आ गंभीर रहले. केकरो से बात करे में लजात रहले. दुनो कॉलेज में एके साथे आवत-जात रहले. संजय के दोस्तन में उनकर भल्ला चाहेवाला सुरेश भी शामिल रहले. एक दिन सुरेश, संजय से...........
         “ संजय तू जवन लईकी से अतना मेल जोल रखले बाड ओकर वेवहार के बारे में जनतो बाड ?”
        “ ना भाई . बस अतने जानत बानी कि ऊ सुनर आ सुशिल बाड़ी. जेकरा के एकहाली केहू देखिल त उनकर दीवाना हो जाई.”
        “ बस अतने से पेयर हो जाला. तू ओकर घर के हाल ना जानल चहब  ?”
        “ ना भाई कुछ ना जानल चाहब.” बस अतने जानत बानी कि हम उनका से पेयार करत बानी. जानत बाड जब केकरो से पेयार हो जाला त ओकर वेवहार का करी. बस एकेगो ईच्छा रह जाला कि दुनो एक हो जाईजा. आ उनका के आपन बना लिही.”
  “ देख संजय, ई ऊ जमाना नईखे कि बिना जनले सुनले केकरो से प्रेम करे लाग. बड़ी मुस्किल से हीर निहन केहू मिलेले. जवन तहरा खातिर आपन जानो देबे के तेयार रहो. बाकी ई त एकदमे जिद्दी बिया. अईसन मत होखे कि आगे चलिके तहरा पछतावे के पड़े.”
“ देखल जाई ईयार . जब पेयार कईनी त डेराई काहे. परिणाम से डेराईल रहिति त पेयार ना करिती.”  
              धीरे-धीरे प्रेम आ संजय के पेयार परवान चढ़े लागल. एक दिन प्रेम, संजय से बोलली कि “ संजय कतना दिन से हमनिके लुका छिपी के खेल खेलत बानी जा. अब हमारा से तहार दुरी नईखे सहल जात. चल कही शहर से बड़ी दूर........... जहवा हमारा आ तहरा के छोड़ी के केहू ना होखे ”.  
           “ देख प्रेम, घुमे गईल कवनो हरज नईखे, बाकी हम तहरा साथे घुमे तबे गईल चाहत बानी जब हमनिके एक हो जईती जा. हम आपन पेयार , ई समाज के बीच एगो मिशाल बनावल चाहत बानी. हमनी के पेयार के केहू छिछला मत कहो. ई जमाना हमनिके पेयार के हीर-रांझा के पेयार से तुलना करो.” लाख समझवाला के बादो संजय प्रेम के चाल से अनजान प्रेम के जिद्द के आगे हारिके सैर सपाटा करे जायके तेयार हो गईले. आ दुनो चली गईल लोग समुन्द्र किनारे गुआ.”
              प्रेम पईसा वाला बाप के बेट्टी रही. गुआ पहुची के एगो बढ़िया होटल में एक बेड के एगो रूम बुक करववली. जब रूम में संजय गईले त एक बेड देखिके चिहाईल प्रेम से बोलले “ प्रेम ई का ? एहिजा त एकेगो बेड बा. हमनी के एकेगो बेड प ? रुकएगो अवरु रूम बुक करवावत बानी.”
              “ रुक संजय, एहिजा हमनिके मरद मेहरारू बानी जा. हमनी के ओसहि रहे के बा. अईसन ना करती त ठहरे के होटलों ना मिलित.”
        “ ई का कहतबाडू प्रेम, बिना बिआह के मरद मेहरारू निहन ई कईसे होई ?”
 प्रेम , संजय के आपन बाही से पकड़त बोलली, हईसे आउरू कईसे. आ संजय के लेले बेड प पसर गईली. काहे लजात बाड, जब हम नईखी लजात त तू काहे ?”
संजय सोच में पड़ी गईले कि अब का कही ? कुछ ना बोल पावत रहन. तबही प्रेम, तू हमार साथ देब कि हम हल्ला करी कि तू हमरा साथे जोर जब्बरजस्ती करत बाड.”  
 “ का कहत बाडू , तू अईसन नईखु कर सकत.”
 “ त तू हमराके नईख जानत, हम कुछुओ कर सकत बानी. बड़ी दिन से तहरा से लुका छिपी हो गईल अब सहल नईखी जात ”.  
              संजय बेड से उठते ........ “ प्रेम, ई ठीक ना भईल. हम त तहरा से पेयार कईनी . बाकी शादी से पाहिले ई सभ के आशा ना कईले रही.”
       “ काहे अईसन बोलत बाड ऊ ज़माना चली गईल जब हीर-रांझा एक दोसरा से मिले खातिर तड़पत रह गईले. आ ई समाज कबो ऊ लोग के एक ना होखे दिहलस. अब ऊ ज़माना नईखे कि हम तड़पत रही. हमहू त तहरा से पेयार कईले बानी त का गलत भईल. हम तहरा से बिना बिआह के नईखी रह सकत. अब चाहे जवन होखे साथ जिए के बा आ साथ मरे के बा.”
       “ तू जवन कहत बाडू आसान नईखे. हमार माई बाबूजी तहरा से बिआह के तेयार ना  होईहे. काहे कि तू दोसर जाति के बाडू. हम त चाहत रही कि जबले माई बाबूजी राजी ना होईते, हमनिके वोईसही पेयार करितिजा. बाकी तू त .......”
              “ अरे कईसे ना तेयार होईहे. हम नु तेयार करवाईब.”
              “ संजय, प्रेम के जिद्द के आगे मजबूर रहले. बोलले “ ठीक बा, जब तू लईकी होके अतना करेजा राखत बाडू त हम लईका हई.”  
              प्रेम आ संजय चार दिन गुआ में रहिके खुबे माऊज मस्ती कईले. जब चार दिन बाद प्रेम आ संजय आपस आईल लोग त पुलिस दुनो के पकड़ी के कोर्ट ले गईल. ऊ लोग के मालुम भईल कि प्रेम के बाबूजी आपन नाबालिक लईकी के बहला फुसला के भगा ले जाएके केस कईले बाडन. कोर्ट जाके प्रेम जज साहेब के सामने बयान देली कि “ ऊ अपना मरजी से संजय के साथे गईल रही. आ ऊ नाबालिक ना बालिग़ बाड़ी. संजय उनका के ना भगाके ले गईल रहले उहे संजय के भगा ले गईल रही.” जज साहेब प्रेम के बात सुनिके अवाक रह गईले. प्रेम के बयान के आधार प संजय जेल से छुट गईले. ओकरा बाद प्रेम आ संजय आपन-आपन घरे चल गईले. 
         थोड़े दिन बाद प्रेम, संजय प बिआह करके जोर देबे लगली. ओने संजय के घर में प्रेम के जाति के लेके संजय के माई बाबूजी अपना जियते जिनगी संजय के बिआह प्रेम से करे के तेयार ना रहले. जेहसे संजय, प्रेम से बिआह करके बात टालत जात रहले. ढेर दिन हो गईल त प्रेम संजय से ........... 
        “ संजय का करेके बा ? बिआह करब कि ना .”
        “ अरे का कहत बाडू कुछ दिन अवरु रुक हम माई बाबूजी के मना लेबी.”
  “ तहरा से कुछ ना होई. हमरे कुछ करेके पड़ी.” प्रेम संजय के लगे से झुझुलात बोलत चली गईली.
  “ अरे सुन तू का करबू.”
 “ तू जानत नईख , ऊ जमाना चली गईल बा जवना में लईकी सभ मरद के यातना सहत रही. आ आपन पेयार पावे खातिर जान तक दे देत रही. हम ऊ में के नईखी. हम तहरा के पावे खातिर कुछुओ कर सकत बानी. पहिले ई बताव कि तू हमरा से बिआह करे के तेयार बाड कि ना.”
 “ ह भाई हऽ, तहरा साथे बिआह करेके तेयार बानी.जब तहरा से पेयार कईले बानी त अब पीछे नईखी हट सकत.”
 “ बस तब तू तेयार रहिह .”
         संजय से बतिआवला के बाद बड़ी सोच में पड़ी गईली प्रेम . बड़ी सोच बिचाराला के बाद एगो निरनय प पहुचली. आ बिना केकरो के कुछ बतवले दोसरा दिन प्रेम कुछ पत्रकार लोग के अपना साथे कईली, आपन स्कूटी के फूल माला से सजववली बैण्ड बाजा मंगववली, आपन दोस्तन के तेयार करववली आ स्कूटी प चढ़ी के बरात लेके संजय से बिआह करे संजय के घरे पहुच गईली.
        थाकी हारे के, समाज आ पत्रकारन के दबाव में आके, संजय के माई बाबूजी, संजय के बिआह प्रेम से करेके तेयार हो गईले. प्रेम के ई रूप देखिके संजय भी हैरान रहले. बिआह के बाद संजय आपन परिवार लेके अलग रहे लगले. एगो छोट कम्पनी में नौकरी पकड़ लिहले. आ प्रेम एगो काल सेन्टर में काम करे लगली. एक बारिस बाद प्रेम के एगो लईका भईल. ओकरा बाद संजय के माई बाबूजी आपन पोता मोह में संजय के लगे जाके आपन बेटा के मना के आपन घरे ले गईली. आ पोता के खेलावे लगले अब ऊ लोग आपन जिनगी खुसहाल बितावत बाडन.
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लेखक परिचय:-

                                                   नाम: डाo उमेशजी ओझा
पत्रकारिता वर्ष १९९० से औरी झारखण्ड सरकार में कार्यरत
कईगो पत्रिकन में कहानी औरी लेख छपल बा
संपर्क:-
हो.न.-३९ डिमना बस्ती
                                                    डिमना रोड मानगो
पूर्वी सिंघ्भुम जमशेदपुर, झारखण्ड-८३१०१८
ई-मेल: kishenjiumesh@gmail.com
मोबाइल नं:- 9431347437
अंक - 17 (3 मार्च 2015)

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