आगि कहीं दहकल - भोलानाथ गहमरी



ताड़ पर से उतरल
खजूरे पर अँटकल
सपना के जंगल में
आगि कहीं दहकल। 
सपना...

जिनिगी के पोखरा में
रोज पड़ल जाल,
बाहर से भीतर बा
गरई के हाल,
कीचड़ में रात-दिन
जियरा बा सउनल। 
सपना...

सोन्ह-सोन्ह चिखना पर
गरम-गरम रस,
उनकर तकदीरे के
रेखा बा ठस,
हमरा त माथे
तलवार बाटे लटकल। 
सपना...

रोज-रोज कुआँ त
रोज-रोज पानी,
पी-पी के जीयत बा
घर के परानी,
दुनियाँ के डहली पर
पाँव नाहीं बहकल। 
सपना...

------------------------------

लेखक परिचय:-

जन्म: 19 दिसंबर 1923
मरन: 2000
जन्म थान: गहमर, गाजीपुर, उत्तरप्रदेश
परमुख रचना: बयार पुरवइया, अँजुरी भर मोती और लोक रागिनी

अंक - 17 (3 मार्च 2015)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.